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कुर्सी

वह खड़े थे मेरी मुखालफत में मैंने कुर्सी दी वह बैठ गए. २- कुर्सी में वह सिफत है यारों बेपेंदी के लोटे भी लुढक लेते है. ३- कुर्सी  के चार पाएं होते हैं तभी तो अच्छा खासा लीडर लोमड़ी बन जाता है. ४-  काम करने के लिए होती है कुर्सी मैंने गद्दी लगा ली और राज करने लगा ५- कुर्सी लकड़ी की होती है तभी पत्थर दिल बैठ पाता  है ६- 'आप' को कुर्सी मिली 'मैं' बैठ गया.

खिड़की वाले सांता

बच्चे ने माँ से कहा- सांता क्लॉज़ आये चले गए हैप्पी न्यू इयर आने वाले हैं माँ यह कौन लोग है जिनके आने से सामने का घर रोशन रहता है हमारे यहाँ अँधेरा माँ बोली- यह बड़ों के बड़े लोग है सांता का छोटा भाई हैप्पी न्यू इयर है जहाँ सांता जाता है वहीँ हैप्पी भी खुशियों का उपहार देने सांता को चाहिए एक अदद खिड़की उपहार उड़ेलने के लिए पर हमारे पास छत तक नहीं. इसलिए सांता और हैप्पी खिड़कियों वाले घर ही जाते हैं. 

सर्दी में

सर्दी में जो लोग कुछ नहीं पहनते वह जाडा खाते हैं लेकिन, जो कपडे नहीं पहन पाते जाड़ा उन्हें खा जाता है. देखा, सर्दी भी कपड़ों का फर्क समझती है!          

जीवन

आँख खुली भाव चेहरे पर आये शब्द कुनमुनाए आह ! सुबह हो गयी !!! २- हवा चेहरा छूती बदन सहलाती बढ़ जाती आगे कहीं बहुत दूर मुझसे ३- सूरज निकला चिड़ियाँ बोली पहले एक इंसान ने आँखें खोली फिर दूसरे, तीसरे और... जीवन जाग गया. ४- ट्रेन बस जहाज मनुष्य चलाता हा मनुष्य बैठता है तब क्यों नहीं यह तीनों इंसान क्योंकि, इनसे मनुष्य  उतर जाता है . ५- आदमी आता है आदमी जाता है जाने के बाद फिर वापस आता है तभी तो एक मकान घर बन जाता है.

तीन खिलौने

खिलौना टूट गया पर खेला कौन ! २- खिलौना आदमी की तरह मिटटी का होता है मिटटी में मिल जाता है . ३- बेटी रो रही थी मुझे याद आया कभी मेरे हाथों से छूट कर खिलौना टूट गया था मैं इसी तरह फूट फूट कर रो रहा था मैंने बेटी को खिलौना ला दिया बेटी मुस्कुरा पड़ी पर मेरी आँखे गीली थीं क्योंकि, मुझे किसी ने खिलौना नहीं दिया था.

पांच क्षणिकाएं

१- प्रीतम मेरे वियोग के दिन गिनना पर दिन मत गिनना. २- मुझे जब तुम मिले मैं मिल लिया खुद से. ३- ओह सड़क इतनी खामोश क्यों है सवेरा ! ४- दो प्रकार की होती है भूख दो लोगों की मिटाती है और मिटती है . ५- हर झुकी आँख शर्म नहीं होती कुछ लोग आँख नहीं मिलाते .

पांच हाइकू

ठंडी  हवाएं उनकी आहट है कानों को लगी. २- पीला सूरज थके हुए चेहरे शाम वापसी . ३- पेट की भूख सूखे पड़े हैं खेत अनाज कहाँ . ४- पिया न आये मुंडेर पर कौव्वा प्रतीक्षा ख़त्म . ५- दरवाज़ा खुला प्राण निकल गए डॉक्टर आया.

चाचा नेहरु

आटे का दूध पीता  चावल का माड़ गटकता  बासी रोटी को ताज़ी के अंदाज़ में चबाता  कोई न कोई बच्चा आज यह ज़रूर पूछेगा- माँ, हमारे चाचा क्या करते थे ! तब माँ कहेगी- बेटा, वह देश चलाते थे दुनिया को शांति का सन्देश देते थे उन्होंने ही दुनिया को शीत युद्ध से बचाया गुट निरपेक्षता का सन्देश दिया वह लालों के लाल थे जवाहर लाल थे . तब क्या बेटा यह न पूछेगा कि माँ...मेरी प्यारी माँ चाचा देश चलाते थे, पिता जी रिक्शा क्यों चलाते हैं उन्होंने दुनिया को शांति का सन्देश दिया हमें रोटी क्यों नहीं दे सके दुनिया को गुट निरपेक्षता की अहमियत बताने वाले चाचा देश में गरीब और गरीबी की अहमियत क्यों नहीं समझे उन्होंने दुनिया को शीत युद्ध से बचाया हमें शीत से युद्ध करने के लिए क्यों छोड़ दिया वह लालों के लाल जवाहर लाल थे तो पिता कंगाल क्यों थे क्या कहेगी माँ !

पत्थर

रास्ते में पडा एक पत्थर रूकावट और ठोकर या पूजा गढ़ कर ईश्वर २- पत्थर खुद नहीं लगता उठ कर ज़मीन से एकाधिक हाथ उसे फेंकते हैं सामने यह भूलते हुए कि, पत्थर वापस आ सकते हैं. ३- ईश्वर हो सकता है पत्थर और पत्थर हो सकता है ईश्वर तब क्यों खाता है पत्थर ठोकर. ४- पाँव मनुष्य के मारते हैं  ठोकर हाथ मनुष्य के उठाते हैं पत्थर और बना देते हैं भगवान् इतना अंतर क्यों है? एक ही मनुष्य के पैर और हाथ में. ५- नदी ने पत्थर को इधर उधर लुढ़काया लेनी चाही परीक्षा उसकी सहनशक्ति की सहनशील पत्थर शिव बन गया आज चढ़ाया जा रहा है जल उसी नदी का.

प्रकृति और मनुष्य

मैं कितना गहरा हूँ नापने चले वह थाह पाने के जूनून में डूबते चले गए. २- समुद्र अगर उथला होता किनारों से टकराए बिना सोता रहता ३- हवा ठंडी थी सिहरा गयी मैंने थोड़ी भींच ली मुट्ठी के साथ जेब में. ४- आसन नहीं अँधेरे को रोकना जब खुद उजाला मुंह छिपाए. ५- चन्द्रमा और सूरज दुनिया के चौकीदार बारी बारी जगह लेते सुलाने और जगाने के लिए दुनिया को.

खंडहर

आओ दोस्तों ! सोते हैं इस खंडहर में देखते हैं सपने कि, इमारत कभी बुलंद थी. २- खंडहर विरासत नहीं होते यह प्रतीक होते है कि, हमने फिक्र नहीं की कभी विरासत की . ३- खंडहर कहर नहीं किसी आक्रान्ता के गवाह नहीं किसी अत्याचार के व्यतीत नहीं किसी खुशहाली के यह सन्देश हैं कि, आओ फिर से करें पुनर्निर्माण . गवाह बना कर इस खंडहर को.

बाबाओं को सोना चाहिए

बाबाओं को सोना चाहिए सोयेंगे तो दो बाते होयेंगी बाबा अगर सोयेंगे तो स्वप्न देखेंगे स्वप्न में खजाना देखेंगे खजाने से देश मालामाल हो या न हो सरकार मालामाल होगी सरकार मालामाल होगी तो नेता और ऑफिसर घूस बटोरने के विकास कार्यक्रम चला पायेंगे इस प्रकार वह मालामाल होंगे. लेकिन दोस्तों मुझे नेताओं-अफसरों का खैरख्वाह न समझो मैं खैरख्वाह हूँ इस देश की जनता का जनता की माँ बहनों का बाबा सोयेंगे तो न प्रवचन करेंगे न मौका लगते ही आसाराम बनेंगे.

मेरी माँ तुम्हारी माँ

मेरी माँ बीमार है. बीमार तुम्हारी माँ भी होगी. पर मेरी माँ माँ है मेरी माँ के सामने तुम्हारी माँ की क्या बिसात मेरी माँ ने दिया है मुझे ऐश और शोहरत बैठे ठाले की सत्ता तुम्हारी माँ ने तुम्हे क्या दिया! गरीबी और रुसवाई मुफलिसी और भूख जबकि, मेरी माँ ने तुम्हे भी दिया है सब्सिडी पर फ़ूड.

आंसू

आज अभी निकाल दिया दिल से अपने मुझ को एक पल न सोचा कि अँधेरा हो जायेगा दिल में. २ शांत झील में कंकड़ फेंक कर खुश हो जाते तुम, भूल जाते कि कंकडों को डूबने का दुःख होता है. ३  जो हंसते नहीं उन्हें मुर्दा दिल न समझो, न जाने कितनी रुसवाइयां झेलीं हैं उन ने. ४ कुरेद कुरेद कर दिल के घाव तुम तो नेल पोलिश का बिज़नस कर रहे हो. ५ मेरी ईमानदारी को तराजू पर मत तौलो ज़मीर के बटखरे ही इसे तौल पाएंगे. ६ मेरे आंसुओं को इतना तवज्जो मत देना नज़र-ए-बीमारी का सबब है कि बहती हैं.

दीवाली

नहीं चांदनी घनी रात में दीपों का उजियारा. टिम टिम टिम दीपक चमके अन्धकार का सीना छल के भागा दूर घना अंधियारा .  दीप जलाएं खील उड़ायें धूम पटाखे की मच जाए फुलझड़ियों से  झरा उजियारा. आओ आओ रामू भैया ठेल गरीबी खील खिलैया खा कर हर्षो जग प्यारा.

रावण का पुतला

रावण ! तने क्यों खड़े हो घमंड भरी मुद्रा में जलने के लिए तैयार जल जाओगे क्या फायदा होगा धुंवा और कालिख बन कर घुल जाओगे हवा में मिल जाओगे धूल में इकठ्ठा लोग चले जायेंगे तुम्हारी राख रौंदते हुए क्या फायदा होगा ! आओ मुझ में समा जाओ मेरे ख़ून में घुल जाओ मैं पालूंगा तुम्हे अगले साल तक फिर से खड़ा कर दूंगा जलने के लिए पुतले के रूप में .

राजनीति

सत्ता शराब नहीं पीती घमंड नहीं करती क्योंकि, सत्ता खुद शराब है चढ़ कर बोलती है सर पर घमंड से . २- नेता बनाते हैं मोर्चा और देश को लगाते हैं मोरचा . ३- गांठों के समूह के मिलने को कहते हैं गठबंधन. ४- कई पतियों से तलाक ले चुकी वामा यानि वाम पंथी . ५. सेक्युलर बिना पैजामे का नाड़ा .

मेला- पांच भाव

मेले में भगदड़ मची मरने लगे लोग अधिकारी गिनने लगे मरे हुए लोग और लगाने लगे हिसाब मुआवज़े के लिए बनने वाली और फिर  मिलने वाली रकम का. २- मेले में माँ के हाथ से बेटे का हाथ छूट गया दोनों ढूढ़ रहे थे एक दूसरे को माँ सोच रही थी बेटा बिछड़ गया बेटा रो रहा था मैं खो गया . ३- मेले में आदमी अकेला उसे वापस जाना है अकेला ही. ४- जब जुट जाते हैं बहुत से अकेले तो बन जाता है मेला. ५- अपनों के परायों के मिलने और फिर बिछुड़ जाने को कहते हैं मेला . 

समुद्र- पांच क्षण

छलक आईं मेरी ऑंखें समुद्र के किनारे पास चला आया समुद्र मुझे समझाने . २- याद आ गया गुज़रा ज़माना आ गया समुद्र में ज्वार. ३- नीला समुद्र भूरा आसमान मेरे पास और आसमान पर चाँद ज्वार आ गया. ४- रूठी चली गयी रेत की तरह फिसल गयी ५- मैं बैठा रहा समुद्र के किनारे तुमने डुबकी लगाई तुम मोती ढूंढ लाये मैं खारा हो चला .

निरंकुश कलम

कुछ  लोग कुछ भी लिख डालते है बिन सोचे विचारे क्योंकी, उनके हाथ  में  कलम है वह  इसका  जैसा भी चाहे इस्तेमाल कर सकते है नही  सोचते कि, निरंकुश कलम तलवार को मौका देती है काट ने  का गरदनो के साथ निरंकुश हाथ भी.

समंदर

बहुत थोड़ा जीवन है, आशाओं का समंदर छोटी सी नौका है, तूफान का है मंजर । छोड़ के चल देते हैं, सवार इतने सारे पार वही लगता है इंसान जो सिकंदर। राजेंद्र कांडपाल 03 अक्टूबर 2013  Bahut Thoda Jeewan hai, aashaaon ka samandar, chhoti sii nauka hai, toofan ka hai manjar. chhod ke chal dete hain, sawaar itane saare, paar wahii lagata hai insaan jo sikandar. Rajendra Kandpal 03 October 2013

नेता जी

नेता जी, कल जब आप जेल में होंगे फटे मैले कंबल के बिस्तर पर लेटे होंगे। आम हिन्दुस्तानी की तरह तालियाँ बजाते हुए मच्छर मारते आपकी रात गुजरेगी खटमलों के आक्रमणों से आपकी कोमल त्वचा आपको घायल लगेगी । पतली दाल, घास फूस से बनी सब्जी और रोटी दलिया और चाय का नाश्ता आपको देगा जनता का वास्ता जिन्होने कभी आप के लिए ऐसे ही तालियाँ मारी थीं और बदले में आपने ! छीना था उनका नाश्ता मच्छरों और खटमलों की तरह चूसा था उनका खून आज शायद आप इसे समझ पाये हों कि आपके भ्रष्टाचार ने देश को बना दिया है आपको मिली जेल से ज़्यादा गंदी, भ्रष्ट और नारकीय जेल  इसलिए हे नेताजी आप इसी जेल में रहना बाहर न आना देश को अब और नरक नहीं बनाना  !

अनुभूति २० मई २०१३

मैने नीम से पूछा     मैंने नीम से पूछा- तू इतनी कड़वी क्यों है? जबकि, तू सेहत के लिए फायदेमंद है। नीम झूमते हुए बोली- अगर मैं कड़वी न होती तो, तुझे कैसे मालूम पड़ता कि कड़वेपन के कारण सेहतमंद नीम की भी कैसे थू थू होती है. -राजेन्द्र कांडपाल २० मई २० १३

अनुभूति 17 june 2013

गंगा- कुछ क्षणिकाएँ   १ गंग जमुन की बहती धार प्यास बुझाए खेत हजार अन्न लहलहाए सींचे धरती बारम्बार -मंजुल भटनागर २ खिल खिल करती मचलती, खेलती आह्लादित उर्मियों को अपने सीने पर बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए मस्ती में झूमती, इठलाती बहने वाली गंगा खो गयी है जाने कहाँ ? -अनिल कुमार मिश्र ३ गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। -राजेंद्र कांडपाल ४ इस देश की बुद्धिमत्ता कुम्भकर्ण की नीद सो रही है उसे पता ही नहीं कि गंगा बीमार हो रही है -त्रिलोक सिंह ठकुरेला १७ जून २०१३

खामोशी

  जहां लोग आपस में नहीं बोलते वहाँ, खामोशी बोलती है चीखती हुई इतनी, कि कान बहरे हो जाते हैं कुछ सुनाई नहीं पड़ता।

जन्म लो कृष्ण !!!

हे कृष्ण ! जब तुम जन्म लेना तब मथुरा वृन्दावन तक न रहना बाल रूप में गरीबों की झोपड़ी में जाना गंदी बस्ती में रहना और खाना जहाँ बच्चे माखन खाना तो दूर उसका नाम तक नहीं जानते रंग कैसा होता होगा नहीं पहचानते बड़े होकर कंस का वध करने केवल मथुरा न जाना महंगाई, भ्रष्टाचार अन्याय और अनाचार के कंस सड़क से संसद तक हैं नाश करने के लिए उनका धर्म की हानि की प्रतीक्षा मत करना धर्म शेष ही कहाँ है ! तुमने शिक्षा देने के लिए नग्न नहाती गोपिकाओं के वस्त्र हरे थे पर द्रौपदी की लाज भी बचाई थी आज नकली कृष्ण बने लोग वस्त्र हरण कर रहे हैं और शकुनि बने द्रौपदी का चीर हरण कर रहे हैं तुमने बजाई होगी सुख और शांति के लिए बांसुरी  मगर आज जनता परेशां, बदहाल और भूखी है राजा बजा रहे हैं चैन की बांसुरी क्या  इस बार तुम आओगे इस भारत को कुरुक्षेत्र बनाओगे ! आ जाओ कृष्ण जन्म लो कृष्ण जन्म लो गीता के कृष्ण !!!! रच दो एक और महाभारत बना दो देश को मेरा भारत महान !  

हाथ - पांच क्षण

किसी के मरने पर लोग  चाकू को दोष  देते हैं उसकी धार कुंद कर देते हैं लेकिन, हाथ ! वह सदा हमारे साथ.    २ ) बनाने के लिए घरौंदा जुटते हैं दोनों हाथ गिराने के लिए घरौंदा काफी है एक ही हाथ  . ३) चढते सूरज को जोड़ते हैं दोनों हाथ जलने से कौन नहीं डरता ४) माता पिता दामाद को थमा देते हैं बेटी का हाथ फिर नहीं देते बेटी का साथ।  ५) पौंधा रोपने के लिए हाथ सहेजते हैं पौंधे को पेड़ काटने के लिए हाथ पकड़ते हैं कुल्हाड़ी को !

सान

कातिलों के बाजुओं की फिक्र नहीं मुझे, हथियारों में उनके इतनी सान नहीं होती है। डर लगता है उन बददुआओं के नश्तरों से मुझे जिन बेबसों की कोई जुबान नहीं होती है।

पांच क्षणिकाएं

किसी ने देखा नहीं कोई देखता भी नहीं लेकिन देखो तो तुम्हारी चौपाल में कैसे कैसे लोग कैसे कैसे फैसले लेते हैं लोकतंत्र हत्यारे अपराधियों को बचाते हैं खुद को लोक सभा कहते हैं. (२) सेनाएं कभी नहीं हारतीं हारते हैं वह लोग जो डरते हैं मौत से।  (३) प्रधानमंत्री ने आज़ाद कर दिया रस्सी खींच कर हवा में झंडे को।  (४) मांसाहारी होते हैं वो जो लोगों को समझते हैं भेड़ बकरी। (5) आम तौर पर मरते हुए लोग आँख खोल कर इसलिए नहीं मरते, कि, उन्हे मोह है रहता है इस दुनिया का ! बल्कि, खुली रहती है उनकी आँखें इस आश्चर्य में कि इतने सारे लोग  फिर भी ज़िंदा रहेंगे। जो शाम निकले थे सुबह की किरण ढूँढने रात सो कर सुबह के उजाले में खो गए। जिन्होंने जलाये रात जाग जाग कर सूरज हजारों ख्वाबों हो गये.   

मूंछ नहीं पूंछ

अफसोस ! मेरे एक पूंछ नहीं मूंछ है पूंछ होती तो हिला लेता भ्रष्टाचार के महाकुंभ में कुछ कमा लेता मूंछ मूंछ होती है आज के जमाने में पूछ नहीं होती है तभी तो तमाम मूंछ वाले मूंछे कटा कर दुम बना कर सत्ता के आगे पीछे हिला रहे हैं भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर पाप नाशनी गंगा में नहा कर हर हर चिल्ला रहे हैं जनता की कमाई हर कर  खूब कमा रहे हैं।   

कुत्ते की मौत पर

मेरी गाड़ी से कुचल कर एक कुत्ता मर गया मैं दुखी था कुत्ते की मौत पर मगर  दुखी नहीं हो सकता था क्योंकि, मेरे मोहल्ले में सभी धर्मों और उनके अंदर जातियों के लोग रहते हैं और सेकुलर भी।

माँ का चैन

बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, माँ सुबह उठ कर जल्दी कुल्ला मंजन कर चौके में घुस गयी है वह नाश्ता बनाती, टिफ़िन पैक करती है फिर बच्चों को ड्रेस पहना कर टिफिन बस्ते में ठूंस देती है बच्चे माँ के गालों को चूम कर चिल्लाते हुए टाटा टाटा कह कर चले जाते हैं माँ पसीना पोंछती हुई सोफ़े पर बैठती है और ज़ोर से चैन की सांस लेती है । बच्चों के जाने के बाद माँ क्यों लेती है चैन की सांस !     

माँ का व्रत

माँ हमेशा व्रत रखतीं कभी पति के लिए कभी लड़का पैदा होने के लिए कभी संतान की मंगलकामना के लिए तो कभी घर की खुशहाली के लिए मैं सोचता- माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली हमे भरपेट खिला कर आधा अधूरा खा कर रह जाने वाली माँ व्रत ही तो रखती थी!

नियंत्रण

सुबह सुबह घड़ी ने चीखते हुए कहा- उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है। आज उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला- ऐ घड़ी, तू मशीन होकर मुझे निर्देश देगी! घड़ी बोली- तुमने खुद ही तो सौंपा है अपना नियंत्रण मुझे।

भूकंप

इस शहर में जब आता है भूकंप निकल आते हैं लोग अपने अपने घरों से कुछ लोग इधर तो काफी लोग उधर भाग रहे होते हैं मगर भगदड़ नहीं होती यह क्योंकि लोग लूटने जा रहे होते हैं एक टूटी दुकान का सामान और ले जा रहे होते हैं सुरक्षित अपने ठिकाने में। तब कुछ ज़्यादा काँप रही होती है धरती भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा! उदास मत हो मेघ कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं। बहाने लगते हैं भावनाओं के सैलाब नियंत्रण का बांध तोड़ जाते हैं। नहीं रोक सकूँगा तुम्हें बाहों में बह जाऊंगा तुम्हारे साथ गहराई तक तुम्हारी रिमझिम आँखों में। फिर जाऊंगा कैसे तुम्हारे अंतस में तुम्हें यूं उदास छोड़ कर रोक न सकूँगा खुद को तुम्हारे साथ रोने से इस बारिश की तरह।

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन भीग गया तन मन बारिश  में। बादलों की तरह घर से निकल आना मेघ गर्जना संग चीखना चिल्लाना नंगे बदन सा मन भीग गया बारिश में। कागज़ की नाव का नाले में इतराना दूर तलक हम सबका बहते चले जाना अब तो बाल्कनी से देखते हैं बारिश में। अपनी नाव के संग दौड़ हम लगाते डूबे किसी की  नाव सभी खुश हो जाते कहाँ दोस्त, नाव कहाँ अकेले खड़े हम बारिश में।

किसान

मिट्टी को गोड़ कर घास को तोड़ कर खेत बनाता है किसान। खाद को मिलाता है खेत को निराता है श्रम का पसीना इसमे बहाता है बीज का रोपण  कर पौंध बनाता है किसान। सुबह उठ जाता है खेतों पर जाता है श्रम उसका फल जाये मन्नत मनाता है पौंधा खिलने के साथ खुश हो जाता है किसान। श्रम का प्रतीक है जीवन का गीत है आस्थाओं से अधिक पौरुष का मीत  है हर कौर के साथ याद हमे आता है किसान।

चुभन

कांटे अगर फूल होते धूप से मुरझा जाते, तेज़ हवा से बिखर जाते ज़मीन पर गिर कर पैरों की ठोकर पाते पर/कांटे- पूरी बहादुरी से धूप और हवा का मुकाबला करते हैं मुरझाते नहीं कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते  लेकिन, इसके बावजूद  बहादूरों की प्रेरणा  कांटे बदनाम हैं क्योंकि, वह चुभते हैं।

गंगा, मेरी माँ!

माँ और गंगा जल समाता है जिनकी गोद में आदमी। 2 गंगा और माँ एक पवित्र दूसरी पतिव्रता। 3 गंगा माँ और माँ सब याद करें दुख में। 4 माँ कहाँ गंगा में प्रदूषण सबने कहा गंगा मर गयी। 5 गंगा और माँ जीवनदायनी। 6 हिमालय से निकली गंगा शिव ने समेटा घर से विदा हुई माँ पति ने स्वीकारा फिर दोनों ने छोड़ दिया बच्चों के पालन के लिए। 7 गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। 8 गंगा और माँ में अंतर एक में फेंकते हैं कचरा दूसरी को समझते हैं कचरा । 9 गंगा सूख रही है माँ मर गयी है हम कह रहे हैं कहाँ हो माँ! 10 जहां गंगा बहती है जहां माँ रहती है वहीं बसता है जीवन।

उन्हे टूटना होता है

जो फसलें हरी होती हैं उन्हे पकना होता है जो पक जाती हैं उन्हे कटना होता है बिना फलों का पेड़ तना होता है फलदार पेड़ों को झुकना होता है। खासियत इसमे नहीं कि आप हरे हैं या तने हैं जो दूसरों के काम आए उसे मिटना होता है। जो खामोश रहते हैं वह बुत होते हैं वक़्त बीतते ही उन्हे टूटना होता है।

बरसना

मेघों ने चाहा था धरती पर बरसना पर पानी बन कर बह गए। 2 बचपन में जब मैं गिरता था माँ की आँखों में करुणा बरसती थी जबसे /बड़े होकर /मैंने गिरना शुरू किया है माँ की आँखों से आंसुओं की गंगा बहती है। 3 ज़रूरी नहीं कि झुंड में भेड़िये ही मिले झुंड में लुटेरे भी चलते  हैं । लूट एक जशन  है नेताओं का टशन है खरीदारों की बस्ती में बाज़ार ए हुस्न है। 4  

बाबू जी की सांस

बाप मर गया था शायद बेटे ने निकट आकर पहले धीमे से पुकारा फिर ज़ोर से आवाज़ दी- बाबू जी...बाबू जी। बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी कृशकाय शरीर में कोई थरथराहट नहीं हुई फिर बेटे ने बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई फिर भी हाथ नहीं हटाया मानो विश्वास कर लेना चाहता हो कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी जब विश्वास हो गया तब बेटे ने पत्नी के पास जाकर कहा- सांस बंद हो गयी है सुन कर पत्नी ने भी पति की तरह चैन की सांस ली।

हवा

हवा बहती है हवा कुछ कहती है हवा, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तब भी नहीं, जब वह/बहुत तेज़ बहती है केवल बालों से खेलती है कपड़ों को अस्त व्यस्त कर देती है फिर भी, नुकसान नहीं पहुंचाती उस समय  भी नहीं जब वह आँधी होती है तब वह उखाड़ फेंकती है उन कमजोर पेड़ों और वस्तुओं को जो/नाहक अपने अहंकार में उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं ऐसे ही कमजोर और अपनी जड़ से उखड़े हुए दूसरे कमज़ोरों को नुकसान पहुंचाते हैं हवा मंद मंद हो या तीव्र एक ही संदेश देती है फुसफुसाते हुए या गरजते हुए- रास्ता मत रोको खुद भी आगे बढ़ो दूसरों को भी बढ़ने दो बाधाओं को जड़ से उखड़ना ही है।  

नीम

मैंने नीम से पूछा- तू इतनी कड़वी क्यों है? जबकि, तू सेहत के लिए फायदेमंद है। नीम झूमते हुए बोली- अगर मैं कड़वी न होती तो, तुझे कैसे मालूम पड़ता कि कड़वेपन के कारण सेहतमंद नीम की भी कैसे थू थू होती है।

मैं

मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं, मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं। ताकत को मेरी तौलना मत यारो, महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं। 2 तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है। जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है। 3 लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक, होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक। 4 ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले, कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं। अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त, कुछ दोस्त ऐसे भी  बनाए जाते। 5 मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा, जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं। 6. इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।

वेटिंग रूम

दोस्त, तुम वेटिंग रूम हो वेटिंग रूम में यात्री आते हैं, ट्रेन की प्रतीक्षा करते हैं और ट्रेन आने पर खिले चेहरे के साथ चले जाते हैं पर वेटिंग रूम कहीं नहीं जाता वह बैठा रहता है एक जगह देखता रहता है एकटक यात्रियों को और ट्रेन को आते और जाते पूरी भावहीनता के साथ न तो यात्रियों के आने पर खुश होता है न ट्रेन आने के बाद उनके चेहरे पर बिखरी  प्रसन्नता का सहभागी बनता है वह सिमटा रहता है जन्म के समय लिख दिये गए अपने एकाकीपन में ।

अरे अमेरिका !

ऐ अमेरिका तुमने मुझे बेइज्जत किया इसलिए कि माइ नेम इज खान! तुम ने शाहरुख को किया मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि वह नाचता गाता है ऐसे भांड मिरासियों की क्या इज्ज़त पर आइ एम पॉलिटिशन खान मेरी तिजोरी में गिरवी हैं एक प्रदेश के करोड़ों मुसलमान मेरे पैरों में जन्नत ढूंढा करती हैं एक पूरी सरकार पर तुमने मेरी तलाशी ली इसलिए कि माइ नेम इज खान ! अरे मैं तुम्हारे देश बॉम्ब फोड़ने नहीं आया था मेरी तमन्ना थी उस हरवर्ड को देखने की जिसे तुम लोगों ने मोदी को देखने नहीं दिया सचमुच उस दिन बेहद खुशी हुई थी पर मुझे मोदी की श्रेणी में क्यों रखा भाई जान मैं वही हूँ जिसे मोदी ने मरवाया था और जिसका तुम्हें बुरा लगा था। और जिसके कारण तुम मोदी को अपने देश घुसने नहीं देते अरे अमेरिका कुछ तो फर्क समझों मोदी और खान का हिन्दू और मुसलमान का!

पसीज रही सड़क

साहब की भारी अटैची सर पर रखे मजदूर आगे आगे लगभग दौड़ रहे  साहब के पीछे है उसके साथ हैं उसके शरीर और चेहरे से बहता पसीना माथे से गालों तक बहती पसीने की धार मानो सहला रही, ठंडा कर रही उसके बदन को साहब की कार में रखता है मजदूर अटैची साहब निकाल कर देते हैं पर्स से दस रुपये चेहरे पर हिकारत और एहसान करने के भाव पलट कर नहीं देखते मजदूर के चेहरे की कातरता और पसीने की बूंदे पर ज़मीन उसके साथ हैं उसके पसीने से पसीज कर पिघल रही है डामर की काली सड़क।

बाहर की दुनिया

एक घर में दो दुनिया होती हैं बेटे के कमरे के अंदर  एक और बेटे के कमरे के बाहर दूसरी कमरे के अंदर बेटे के साथ उसकी पत्नी और बेटा  होते हैं वह बच्चे से खेलता, हँसता और लाड़ करता है बीच बीच में पत्नी को भीनी मुस्कुराहट के साथ देखता आँखों ही आँखों में शरारत भरे संदेश देता है पत्नी उसी प्रकार से जवाब देती है, मुस्कुरा कर, नाज़ दिखा कर नखरे करते हुए लेकिन, बेटे के कमरे के बाहर की दुनिया.....! बिल्कुल अलग होती है इस दुनिया में एक बूढ़ी, कमजोर और टूटी हुई माँ रहती है जो सब खो चुकी है पति, खुशी और स्वास्थ्य उसे नहीं मिलता बेटे का स्नेह और बहू का सम्मान पोता भी उसे मुंह बिचका कर देखता है वह पकड़ना चाहती है पर वह तेज़ी से निकल जाता है, पकड़ से बाहर कमरे के अंदर से आती हंसी और उल्लास की ध्वनि माँ के कानों को अच्छी लगती है उसके चेहरे पर तिर जाती है वह पुरानी शर्मीली मुस्कुराहट जब पति जवान था, बेटा छोटा था उसकी आंखे टिकी रहती हैं बेटे के कमरे के दरवाजे पर कि शायद दरवाजा खुले कमरे के अ...

होली का त्योहार

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होली हाइकु

होली के रंग साजन संग गोरी लाल गुलाल। 2- होरिया मन कस्तुरी गंध फैली होली आयी रे। 3- पूर्ण चंद्रमा होली जलाते लोग कल होली है। 4- उनींदा सूर्य सिर चढ़ी भंग है होली है भाई। 5- रंगीन पानी बूढ़ा भया जवान होली मनाएँ।

अंधे की सुंदरी

एक अंधा लड़का आ खड़ा होता रोज ही अपने घर की खिड़की पर महसूस करना चाहता अपनी नाक, कान और त्वचा से प्रकृति को पक्षियों का चहचहाना सुनना ठंडी हवा के झोंकों के साथ सुगंध- दुर्गंध का अनुभव करना चाहता एक दिन, उसके घर की खिड़की के ठीक सामने की खिड़की खुली एक खूबसूरत स्त्री आ खड़ी हुई युवक को स्वर्गिक सुगंध की अनुभूति हुई वह भरता रहा फेफड़ों में  वह स्वार्गिक सुगंध रोज चलता रहा यह सिलसिला एक दिन लड़की की दृष्टि एकटक निहारते लड़के पर पड़ी लड़के की बेशर्मी पर लड़की को थोड़ा क्रोध आया उसने खिड़की बंद कर ली फटाक से लड़का अविचलित रहा खिड़की बंद होने की आवाज़ कहाँ सुनाई दी थी उसे दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ और उसके बाद के दिनों में भी एक दिन लड़की को मालूम हुआ कि लड़का अंधा था अब वह थोड़ा आश्वस्त हो गयी अंधे के सामने वह कुछ हरकतें भी कर सकती थी मसलन बाल सुखाना, कंघी करना, सामने की ओर देख मुस्कराना कभी शरारत से हाथ हिला देना भी। लड़की सोचती अभागा है यह अंधा सामने खड़े अप्रतिम सौन्दर्य को देख नहीं सकता, प्यार नहीं कर सकता मेरी मुस्कराहट का प्रत्युत्तर नहीं दे...

द्रौपदी

आज भी द्रोपदी को कामुक निगाहें घूरती हैं लोग उसको नंगा होते देखना चाहते है। पर अब दुस्साशासन  द्रौपदी की चीर नहीं खींचता इसका यह मतलब नहीं कि, दुस्साशन सुधर गया है बल्कि, अब द्रौपदी साड़ी नहीं, मिनी पहनती है।  

मेघ

काले, घुमड़ते और गरजते मेघ की तरह तुम किसी बच्चे को सहमा सकते हो, डरा भी सकते हो लेकिन, अगर वह विचलित नहीं हुआ तुम्हारी गर्जना से बारिश की आशा से प्रफुल्लित हुआ तो तुम्हें बरसाना ही होगा।

विडंबना

मैं देना चाहता हूँ उन लोगों को जन्मदिन की बधाइयाँ जो अपना जन्मदिन नहीं मना पाते जिन्हे कोई हॅप्पी बर्थड़े नहीं कहता लेकिन क्या करूँ उनके माता पिता तक को याद नहीं कि कब और कैसे पैदा हो गए वह। 2- अगर दरख्त फूल फल न देते तो भी आज की तरह कटते। 3 उन्हे खूबसूरत कह कर मुसीबत मोल ले ली मैंने, अब वह आईने की तरह इस्तेमाल करते हैं मुझे।

समय और समझ

समय और समझ सगे भाई बहन हैं समय बड़ा समझ उसकी छोटी बहन समय की उंगली पकड़ समझ बड़ी होती है समय के साथ मिले अनुभव से समझ परिपक्व होती है समय की हथेली में समझ निवास करती है समय हमेशा समझ की रक्षा करता है तभी तो समय सदा बलवान होता है।

खुश रहो

देना चाहता हूँ शुभकामनायें उन लोगों को, जो, माना नहीं पाते अपना जन्मदिन काट नहीं पाते केक, बाँट नहीं पाते उपहार,  मिठाइयां  और ढेर सारी खुशियां। मगर कैसे दूँ उन्हे खुद याद नहीं अपने जन्म की तारीख वह तो पैदा हो गए थे ऐसे ही पिता मजूरी करके आते माँ बर्तन माँजती, झाड़ू पोछा करती दोनों थके होते सोना चाहते पिता की इच्छा कुलांचे मारती वह माँ को अपनी ओर खींचते माँ कसमसाती पर विरोध नहीं कर पाती समर्पण कर देती खुद को पति को । फिर दोनों सो जाते भूल जाते कोई जीव बन सकता है इस कारण इसीलिए जब यह बच्चे पैदा होते हैं/तो उनके माता पिता तक भूल जाते हैं उनके जन्म की तारीख। इसलिए/देना चाहता हूँ कहना चाहता हूँ- जब पैदा हो ही गए हो तो खुश रहो।

करोड़पति मुर्दा

यकायक वह शांत हो गया सांस रुक गयी शायद मर गया था आसपास इकट्ठा लोग रोने लगे बेटा, बेटी और पत्नी क्रमानुसार अपेक्षाकृत ज़्यादा ज़ोर से रो रहे थे। यकायक उसने आँख खोई रोते हुए लोगों को देख कर घबरा गया बोला- क्या हुआ? क्यों रो रहे हो तुम सब। यह देख कर रोने के स्वर ज़्यादा तेज़ हो गए करोड़पति मुर्दा ज़िंदा जो हो गया था।

घर बनाने की बात करें

न तुम कुफ़र करो, न हम पाप करें। मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें। लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने आओ   अब इक घर बनाने की बात करें। हमने जलाया है, खोया है, बांटा है, आओ अब कुछ जुटाने की बात करें। मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं, धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें। गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे, आओ कल को सजाने की बात करें।

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं, कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है. 2. रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं, उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा। 3. क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको, इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं। 4. दुश्मनी करो इस तबीयत से कि दुश्मन भी लोहा मान ले। 5. आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।

ढूंढते रहे अर्थ

मैंने पृष्ठ पर पृष्ठ भर दिये थे यह सोच कर कि तुम पढ़ोगे मेरी भावनाएं समझोगे लेकिन, तुम मेरी लिखावट में उलझे रहे ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ ठीक करते रहे मात्राएँ भाँपते रहे, खोजते रहे, और लाते रहे अपने-मेरे बीच पंक्तियों के बीच के अर्थ ।

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र ध्वज आसमान पर लहराता है फहर फहर कर हवा में गोते लगाता है समुद्र की लहरों सा उन्मुक्त नज़र आता है यह राष्ट्रीय ध्वज हम भारत गणतंत्र के गण हर 26 जनवरी फहराते हैं ! गलत, हम ध्वज के साथ फहराये कब ! ध्वज की उन्मुक्तता के साथ आकाश में लहराये कब हमने कहाँ अनुभव की ध्वज की प्रसन्नता कहाँ महसूस की स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता हम तो बस गण है जन गण मन गाने को और फिर अगले साल तक सो जाने को।

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़ कैसे दौड़ लेता है? आसान है इसे समझना दस किलोमीटर दूर स्कूल में समय पर पहुँचने के लिए उसे दौड़ना पड़ता था। पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही बुधिया को खाना मिल सकता था इसलिए खेत तक जाने और आने के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ता था। पिता मर गए खेत बिक गए बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका शहर आ गया सरकारी नौकरी के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ा सरकारी नौकरी नहीं मिली सो, नौकरी करने लगा चाय की दुकान पर झुग्गी से कई किलोमीटर दूर दुकान तक पहुँचने के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ता था। जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो सामने भूख हो वह बुधिया तेज़ तो दौड़ेगा ही।

खालीपन जहर और दोष

पसर जाता है हम लोगों के बीच अनायास इतना खालीपन कि, सहज जगह पा जाती हैं कोंक्रीट की दीवारें। जहर जीने वालों को बार बार पीना पड़ता है जहर मरने वाले क्या खाक नीलकंठ बन पाते हैं। दोष  जो साथ चलना नहीं चाहते वह अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।    

बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता सिसक रही माँ बेटी पैदा हुई। मिठाई कहाँ बधाई कहाँ घर में शोक फैला यहाँ वहाँ। औरत के होते हुए यह क्या बात हुई। बेटी पैदा हुई। वंश की चिंता सब की चिंता उपेक्षित बेटी को कौन कहाँ गिनता। पढे लिखे समाज में जहालियत की बात हुई । बेटी पैदा हुई। वंश चलाने को बेटे की आस में माँ फिर माँ बनी बेटे के प्रयास में। भूंखों की फौज खड़ी नासमझी की बात हुई। बेटी पैदा हुई। बेटे की माँ ने बेटी की माँ ने भ्रूण हत्या की बेटी के बहाने। कैसे होगा बेटा अगर बेटी की न जात हुई।  

हवा

तुम यदि हवा हो तो मुझे अनुभव करो मुझे अपना अनुभव कराओ किन्तु तुम तो हवा की तरह गुज़र जाती हो तुम्हारा एहसास तक शेष नहीं रहता।

खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन जब, मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी । लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी, थोड़ी कच्ची भी। मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी । खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में फर्क नहीं करती वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है क्योंकि, मुन्ना की थाली में जो घी है वह चुन्ना की थाली में नहीं वह उसे खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता । पर एक चीज़ होती है भूख जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में समान होती है, समान रूप से सताती है वह जब लगेगी, तब मुन्ना घी के साथ और चुन्ना घी की खुशबू के साथ ज़रूर खाएगा खिचड़ी।  

बहक गयी बेटी

माँ ने सीख दी थी- बेटी दफ्तर जाना और सीधे घर वापस आना इधर उधर देखना नहीं किसी की छींटाकशी पर कान भी मत देना बेटी/माँ की सीख का अक्षरशः पालन करती थी दफ्तर जाती और सीधे वापस आती इधर उधर भी नहीं देखती, न कुछ सुनती । इसके बावजूद/एक दिन लड़की का अपहरण हो गया कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद बेहोश छोड़ गए सड़क पर, गंभीर हालत में । अस्पताल में लड़की का ईलाज चल रहा था बाहर माँ विलाप कर रही थी- हाय क्या हो गया बिटिया को कैसे बहक गए उसके पाँव।

न्यू इयर सेलिब्रेशन

नया साल सेलिब्रेट करने निकले  थे कुछ लोग नाचते रहे रात भर डिस्को पर झूमते रहे पी कर पब में जैसे ही बजा बारह का घंटा बुझी और जली रोशनी गूंज उठा  खुशियों भरा शोर चढ़ गया  नशे का सुरूर कुछ ज़्यादा थिरकने लगे थे लड़खड़ाते पाँव । सेलिब्रेशन खत्म हुआ सिर पर चढ़े नशे के साथ लड़खड़ाते पैर रोंद रहे थे सुनसान सड़क तभी निगाह पड़ी ठंड से काँपते अधनंगे शरीर पर देखने से पता लग रहा था शरीर जवान है-शायद अनछुवा भी शराबी आँखें गड़ गयी जिस्म के खुले हिस्सों पर आँखों आँखों में बाँट लिए अपने अपने हिस्से नशे से मुँदती आँखों पर चढ़ गया जवानी का नशा गरम लग रहा था काँपता शरीर घेर लिया दबोच लिया उसे कामुकता भरे उत्साह से उछलने लगे उसके शरीर के चीथड़े बोटी तरह नुचने लगा शरीर कामुक किलकारियाँ और हंसी डिस्को कर रही थी दर्द भरी चीख़ों के साथ शायद बहरे हो चुके थे आसपास के कान न जाने कितनी देर तक मनता रहा हॅप्पी न्यू इयर जब खत्म हुआ दरिंदगी का उत्सव फूटपाथ  पर रह गया कंपकँपाता शरीर  जिसे...