शनिवार, 7 जुलाई 2012

तुक्का फिट

भागता हुआ पहुंचा उठाने को चिलमन उनकी
मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं।

रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक
रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता।

मेरे आँगन में शाम बाद होती है
पहले उनके घर अंधेरा उतरता है।

देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ।
पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा।

मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं।
सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।

खुशी के आँसू

पिता जी मर रहे थे
घर में अफरा तफरी मच गयी
जल्दी से गंगाजल लाओ
पंडितजी के मुंह में डालो
सीधे स्वर्ग जाएंगे।
रोना पीटना शुरू हो गया
लेकिन माँ की आंखो में
एक बूंद आँसू नहीं थे
बुजुर्गों ने कहा- बहू सदमे में है
उसे रुलाओं ।
सहेलियों ने झकझोरा-
कमला, तू रोती क्यूँ नहीं, रो ?
माँ ने कुछ सुना नहीं
वह तो उधेड़बुन में थीं।
कैसे होगा दाह संस्कार
और बाद के काम काज
घर में इतने पैसे कहाँ।
इनकी तनख्वाह तो रोजमर्रा की जरूरतों के लिए
काफी नहीं थी, बचत क्या खाक होती।
पिता शायद मर गए थे
आवाज़ें आने लगी
भाई कफन दाह संस्कार के इंतज़ाम करो
शव को घर में ज़्यादा देर रखना ठीक नहीं।
माँ की परेशानी ज़्यादा बढ़ गयी
कि तभी कुछ लोग अंदर आए
पिता के ऑफिस के लोग थे
उनमे से एक बुजुर्ग ने
बेटे के हाथ में
ऑफिस में एकत्र हुए कुछ रुपये रख दिये।
वह बोला- बेटा अभी यह रखो
पिताजी का काम करवाओ
हम जीपीएफ़ आदि के पैसे जल्द भेज देंगे।
सदमे में जाती लग रही माँ
सब देख और सुन रही थी।
यह सुनते ही माँ
दहाड़ मार कर रोने लगी।
सब कहने लगे- चलो रोई तो
अब सदमे में नहीं जाएगी।
पर माँ के अलावा कोई नहीं जानता था कि
इस विलाप में
खुशी के आँसू ज़्यादा थे
कि इज्ज़त बच गयी ।

गब्बर सिंह

भूख से बिलबिला रहे बेटे से
माँ ने कहा-
बेटा सो जा! नहीं तो गब्बर आ जाएगा।
बेटे ने माँ के चेहरे को निहारा
फिर बोला-
माँ, यह गब्बर कौन है?
यह कहाँ रहता है?
इसका नाम लेते समय
तुम इतनी उदास और चिंतित क्यूँ हो?
बेटे को थपकते हुए माँ बोली-
बेटा यह गब्बर सिंह
पचास पचास कोस दूर नहीं
हर कहीं आस पास रहता है
यह भूख का दैत्य है
जो महंगाई के शेर पर सवार रहता है
इसे देख कर
तेरे बाबा और चाचा भी काँप जाते हैं
दूर देश मजूरी करते है
फिर भी इस गब्बर को भगा नहीं पाये हैं
महंगाई पर सवार गब्बर ज़्यादा भयानक लगता है
तुझे जागा देखेगा तो तुरंत पकड़ लेगा।
बेटे ने कहा- माँ अगर मैं सो गया तो क्या
गब्बर सिंह नहीं आएगा?
तू मुझे लोरी गा कर भी तो सुला सकती थी
गब्बर का डर क्यूँ दिखा रही है ?
माँ बोली-
बेटा लोरी में दूध की कटोरी और बताशे का जिक्र होता है
इसे सुन कर गब्बर भागता हुआ आ जाता है।
तुझे उठा ले गया तो मैं क्या करूंगी।
तू ठीक कहता है कि गब्बर कल भी आएगा
लेकिन, अगर तू आज सो गया
तो यह आज तेरे पास नहीं आएगा।
कल तो मैं
इस गब्बर को भगाने का
कोई उपाय ढूंढ लूँगी।
चल अब सोजा
नहीं तो गब्बर बाहर ही खड़ा है।
बच्चे ने अपनी आंखे कस के भींच ली
कल रोटी मिलने की आस में
जाने कब वह सो गया ।
माँ गब्बर सिंह को भगाने के लिए
जय और वीरू
यानि रोटी और नमक की उधेड़बुन में
देर रात तक जागती रही।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...