रविवार, 4 मार्च 2012

मन

मेरे मन आँगन में
महकती हैं भावनाएं
खिलते हैं आशाओं के फूल
और
पुलकित हो उठता है शरीर
जैसे कोई नन्ही बच्ची
दौड़ती फिरती है घर आँगन में
किलकारी भरती है माँ के लिए
और
बाहें फैला कर
कूद पड़ती है पिता की गोद में.

यथार्थ
मुझे
यथार्थ बोध हुआ
जब मैंने उसे बालदार कठोर देखा
छुआ तो वह सचमुच कठोर था
और जब तोडा
तो वह मीठा नारियल साबित हुआ.

भय
कभी आप सोचो कि
क्या अतीत इतना भयावना होता है
कि आप उसकी ओर
इतने सदमे में पीठ करते हो कि
वर्तमान भी अतीत बन जाता है.

मुक्ति
मैं तब
खरगोश जैसा दुबक  जाता हूँ.
कबूतर जैसा सहम जाता हूँ
जब मेरे सामने आ जाती है
विपत्तियों की बिल्ली.
जबकि
मेरे सामने ही
भय का चूहा
खरगोश की तरह कुलांचे भर कर
स्वतंत्र होना चाहता है
कबूतर की तरह उड़ जाना चाहता है.
मैं हूँ कि उसे
मन की चूहेदानी में पकड़ कर
बिल्ली से
छुटकारा पाना चाहता हूँ.
यह नहीं सोचता कि
क्या क़ैद हो कर कोई
मुक्ति पा सकता है
बाहर बैठी भय की बिल्ली से.




अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...