मिट्टी को गोड़ कर
घास को तोड़ कर
खेत बनाता है
किसान।
खाद को मिलाता है
खेत को निराता है
श्रम का पसीना
इसमे बहाता है
बीज का रोपण कर
पौंध बनाता है
किसान।
सुबह उठ जाता है
खेतों पर जाता है
श्रम उसका फल जाये
मन्नत मनाता है
पौंधा खिलने के साथ
खुश हो जाता है
किसान।
श्रम का प्रतीक है
जीवन का गीत है
आस्थाओं से अधिक
पौरुष का मीत है
हर कौर के साथ
याद हमे आता है
किसान।
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