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जुलाई 30, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

होरी

होरी को रचते समय प्रेमचंद ने होरी से कहा था- मैं ग़रीबी का ऐसा महाकाव्य रच रहा हूँ जिसे पढ़ कर लाखों करोड़ों लोग डिग्री पा जाएंगे, डॉक्टर बन जाएंगे प्रकाशक पूंजी बटोर लेंगे साम्यवादी मुझे अपनी बिरादरी का बताएंगे किसी गरीब फटेहाल को कर्ज़ से बिंधे नंगे को लोग होरी कहेंगे । इसके बाद तू अजर हो जाएगा किसी गाँव क्या शहर कस्बे में गरीबों की बस्ती में ही नहीं सरकारी ऑफिसों में भी तू पाया जाएगा, साहूकारों से घिरे हुए पास के पैसों को छोड़ देने की गुहार करते हुए और पैसे छिन जाने के बाद सिसकते हुए। निश्चित जानिए उस समय भी होरी रो रहा होगा तभी तो प्रेमचंद को उसका दर्द इतना छू पाया कि वह अमर हो गया।