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अप्रैल 6, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज बहुत याद आती है PAC

लॉकडाउन तोड़ कर कोरोना वायरस फैलाने के लिए बेचैन और मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए आमादा लोगों के पुलिस पर हमलों के बाद , अब उत्तर प्रदेश पुलिस थोड़ी सक्रिय नज़र आती है. लेकिन , अभी कुछ कमी लगती है. मुझे याद आ जाती है सत्तर के दशक तक सक्रिय पीएसी की. मुल्लाओं के भूत भागते थे इस कांस्टेबुलरी से. इस फाॅर्स की खाकी वर्दी को देखते ही मुल्ला , ठुल्ला और कठमुल्ला की लुंगी , पेंट , जांघिया , आदि सब गीली हो जाती थी. छात्र आन्दोलन के दौरान प्रोविंशियल आर्म्स कांस्टेबुलरी का ख़ूब उपयोग किया जाता था. छात्र इन्हें मामा कह कर चिढाते थे. ऐसे में जब भांजे इनके हत्थे चढ़ जाते थे , मामा इनकी मामा की तरह नहीं धुनकी की तरह धुनाई करते थे. अब फिर आता हूँ आज के परिदृश्य पर. देख रहा हूँ भाई लोग लॉक डाउन का पालन कराने आई पुलिस पर बेहिचक , बेधड़क , बेरहम हमला करते हैं. पुलिस अधिकारीं को खूनम खून कर देते हैं. दिल्ली में तो इन लोगों के कारण कितने पुलिस अधिकार चोटिल हुए , कोमा तक पहुँच गए. ऐसे में सोचता हूँ अगर उत्तर प्रदेश की पुलिस आर्म्स कांस्टेबुलरी यानी पीएसी होती तो क्या यह पत्थरबाज़ सडकों पर भागते हुए पुलिस वै...