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अप्रैल 19, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चार क्षणिकाएँ

आसमान हवा पानी और ज़मीन सब मेरे फिर भी  मैं भिखारी फिर कैसा दाता ! २. ऎसी घमासान तू तू मैं मैं कोई समूह नहीं सिर्फ मैं कहीं नहीं 'आप' ! ३. दिन निकलता है अँधेरे की गोद से या अँधेरे को उगलता है? ४. बच्चा रोता नहीं बहल जाता है झुनझुने से रोते बड़े हैं बहलते नहीं झुनझुने से।