गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

छोटी दुनिया

दुनिया कितनी छोटी है
दो कदम तुम चलो
दो कदम वह चलें
और दोनों मिल जाते हैं .


लकड़ी

मैं सीली लकड़ी नहीं
कि, खुद
तिल तिल कर सुलगूँ
और दूसरों को
धुआं धुआं करूँ .
मैं सूखी लकड़ी हूँ
धू धू कर सुलगती हूँ
खुद जलती हूँ
और किसी को भी जला सकती हूँ
अब यह तुम पर है
कि तुम मुझसे
अपना चूल्हा जलाते हो
या किसी का घर !

आसमान

करोड़ों सालों से
आसमान तना हुआ है
हम सब के सर पर होते हुए भी
वह हम पर गिरता नहीं है
क्या आपने सोचा कि ऐसा क्यूँ?
क्यूंकि वह बिल्कुल हल्का है
अपने अहम के भार के बिना
तब हम क्यूँ
करोड़ों साल के इस सत्य को स्वीकार नहीं करते
क्यूँ अपने ही भार से गिर गिर पड़ते हैं?

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...