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अक्टूबर 13, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लकड़ी

मैं सीली लकड़ी नहीं कि, खुद तिल तिल कर सुलगूँ और दूसरों को धुआं धुआं करूँ . मैं सूखी लकड़ी हूँ धू धू कर सुलगती हूँ खुद जलती हूँ और किसी को भी जला सकती हूँ अब यह तुम पर है कि तुम मुझसे अपना चूल्हा जलाते हो या किसी का घर !

आसमान

करोड़ों सालों से आसमान तना हुआ है हम सब के सर पर होते हुए भी वह हम पर गिरता नहीं है क्या आपने सोचा कि ऐसा क्यूँ? क्यूंकि वह बिल्कुल हल्का है अपने अहम के भार के बिना तब हम क्यूँ करोड़ों साल के इस सत्य को स्वीकार नहीं करते क्यूँ अपने ही भार से गिर गिर पड़ते हैं?