सपना श्रीमती थीं या कुमारी कोई नहीं जानता था। सरनेम तक पता नहीं था किसी को। कॉलोनियों की खासियत होती है कि वहां एक दूसरे को कोई अच्छी तरह से जानता नहीं या जानने की कोशिश भी नहीं करता। ऎसी जगहों में परपंच को जगह मिलती है। यह परपंच किसी बाई या नौकर के जरिये एक कान से दूसरे कान तक फैलते हैं। कुछ सजग निगाहें भी ऎसी मुआयनेबाज़ी करती रहती हैं। सपना की भी होती होगी। तभी तो यह बात फैली कि वह सजी तो ऐसे रहतीं जैसे मिसेज हों। लेकिन कोई स्थायी आदमी उसके घर में रहता नहीं दिखता था। हाँ, रोज कोई न कोई नया आदमी या फिर पुराना ही आता और देर रात तक जाता दीखता था। अमूमन, सपना इनमे से किसी के साथ सजी धजी निकल जाती, कभी किसी कार में या टेक्सी में। कब लौटती ! कोई नहीं जानता था। लेकिन सुबह उसे दूध उठाते, बालकनी में टहलते या अखबार पढ़ते ज़रूर देखा जाता था। उसके रोज के चलन को देखते हुए लोगों ने यह तय कर लिया था कि वह बदचलन हैं। या साफ़ साफ़ यह कि वह कॉल गर्ल या वेश्या थी। लेकिन मुंह के सामने कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी। ...
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