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जनवरी 24, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अधूरी माँ

माँ जब पिता पर ज्यादा ध्यान देतीं, उनकी सेवा करती, हमसे पहले उन्हें खाना देती, मैं माँ से नाराज़ हो जाया करता था कि, वह पिता को हमसे ज्यादा, अपने जनों से ज्यादा चाहती हैं, प्यार करती हैं. आज जब मेरे बच्चों की माँ मेरी ओर ज्यादा ध्यान देती है, मेरी सेवा करती है, बच्चों से पहले खाना देती है, तो बच्चे उससे नाराज़ हो जाते हैं कि, वह अपने जनों से ज्यादा मुझे प्यार करती है. आजकल के बच्चे मेरी तरह चुप रहने वाले नहीं एक दिन बेटे ने यह कह ही दिया. मैं उससे कहना चाहता था- बेटा, हमें अपनी देखभाल खुद ही करनी है, तुम्हारी माँ को मेरी और मुझे तुम्हारी माँ की सेवा करनी है. जबकि, तुम्हारी देखभाल करने को हम दोनों हैं. मैंने एक के न होने का फर्क देखा है. पिता मर गए, मुझे मिलने वाला प्यार आधा हो गया, सर पर हाथ फेरने वाला पिता का हाथ नहीं रहा. माँ को ही सब कुछ करना पड़ता था. मैंने देखा था मेरे बीमार होने पर रात रात देख भाल करतीं, थपक कर सुलाती अपनी माँ को. मैंने नज़रें बचा कर देखा है बेटा माँ को खुद के सर पर बाम लगाते हुए, अपने थके पैरों को मसलते हुए, बुखार...

विकास

मुझे मालूम नहीं था कि, विकास की आंधी ऐसी होती है जिसमे वन काट दिये जाते हैं, हरियाली खत्म हो जाती है। वनों में शांत विचरने वाला सिंह विकास के अभ्यारण्य में आकर आदमखोर हो जाता है और मार दिया जाता है। ऐसे कंक्रीट के जंगल में इंसान इंसान नहीं रहता भेड़िया बन जाता है।

वसंत

मैं आजतक नहीं समझ पाया, कि, वसंत ऐसा क्यूँ होता है? उसके आने से पहले पेड़ पर पत्ते सूख जाते हैं, अपनी साखों से झड़ जाते हैं। फिर मादक वसंत आता है, हरे पत्तों, सुंदर सुंदर पुष्पों और चारों ओर हरियाली के साथ जग को हर्षाता है, मन गुदगुदाता है। मगर ऐसा क्यूँ होता है कि, उसके जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है क्रोधित सूरज आग उगलने लगता  है वनस्पति, जीव और जन्तु कुम्हला जाते हैं, व्याकुल हो जाते हैं। हे प्रकृति ! वासंतिक सौंदर्य का यह कैसा प्रारंभ यह कैसा अंत।