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सितंबर 6, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मातृ भाषा हिन्दी

सूती धोती ब्लाउज़ में अपनों की देखभाल करती बहलाती, पुचकारती और समझाती हिन्दी से पाश्चात्य पोशाक में लक़दक़ गिटपिट करती अंग्रेज़ी ने कहा- इक्कीसवीं शताब्दी के आधुनिक भारत की भाषा तुझे क्यों कोई साथ नहीं रखता तू उपेक्षित अपनों से सहमी हुई रहती है कभी तूने सोच की क्यों ? क्यों लोग मुझे अपनाते हैं मेरा साथ पाकर धन्य हो जाते हैं तुझे साथ लेने में शर्माते हैं। अंग्रेज़ी के ऐश्वर्य से अविचलित हिन्दी से अंग्रेज़ी ने आगे कहा- क्योंकि, मैं उन्हे गौरव का अनुभव देती हूँ दूसरों से संपर्क के शब्द देती हूँ इस मायने में तू मूक है इसलिए इतनी उपेक्षित है। हिन्दी ने अंग्रेज़ी को देखा चेहरे पर आत्मविश्वास लिए कहा- मैं 'म' हूँ बच्चे का पहला उच्चारण तुम्हारे देश का बेबी भी पहले 'म' 'म' ही करता है मदर नहीं बोलता । मैं बोलने की शुरुआत हूँ बच्चे के शब्द मैं ही गढ़ती हूँ तू उसके बोलने और सीधे खड़े होने के बाद उसके सर चढ़ जाती है बेशक तू मेम हो सकती है मगर माँ नहीं बन सकती क्योंकि मैं बच्चे की जुबान पर उतरी मातृ भाषा हूँ।