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मई 1, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैं

मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं, मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं। ताकत को मेरी तौलना मत यारो, महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं। 2 तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है। जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है। 3 लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक, होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक। 4 ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले, कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं। अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त, कुछ दोस्त ऐसे भी  बनाए जाते। 5 मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा, जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं। 6. इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।