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नवंबर 21, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैदान की लड़की

बेटी अब माँ बन गयी थी सुबह सुबह उठ कर बच्चों, पति और खुद के लिए नाश्ता बनाना बच्चों को उठा कर ब्रश कराना, नहलाना धुलाना, पति को बेड टी देना फिर बच्चों को टिफिन दे कर स्कूल भेजना और फिर अपना नाश्ता करना इसी बीच पति और अपना खाना बनाना और पैक करना खुद और पति के नहाने के बाद उनके कपड़े निकाल देना पति के तैयार हो जाने के बाद उन्हें उनका टिफिन पकड़ाना और दरवाज़े तक विदा करना बिलकुल माँ की तरह सब करती थी बेटी अब खुद तैयार होने के लिए वह आईने के सामने है बालों पर कंघी करते हुए उसे यकायक माँ याद आ जाती हैं जब भी वह माँ की कंघी करती तो उनके सर के बीचो बीच पाती बालों का अभाव वह माँ से मज़ाक करती पूछती माँ तुम्हारे सर यह गड्ढा कैसे हुआ? माँ गहरी सांस लेकर कहती- बेटा पहाड़ की ज़िन्दगी बेहद कठिन होती है हम औरतों को ही दूर से पानी भर कर और लकड़ियाँ बटोर कर उनका भार सर पर ढो कर लाना पड़ता है जिस सर पर हर दिन इतने भार रखे जाएँ उस सर पर बाल कैसे हो सकते हैं? तुम भाग्यशाली हो बेटी मैदान में हो, ज़िन्दगी इतनी कठिन नहीं हैं फिर तुम्हारे सर पर बाल भी कितने लम्बे और घने हैं . बे...