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दिसंबर 15, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता  पथरीला नहीं पानी पानी होता  नदी बहती नहीं पत्थर सी ऐंठी रहती ज़मीन सर के ऊपर होती आसमान पाँव तले कुचलता पक्षी तैरते जानवर हवा में कुलांचे भरते मैं जागते हुए भी ऐसे ही स्वप्न देखता।