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जुलाई 29, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मूंछ नहीं पूंछ

अफसोस ! मेरे एक पूंछ नहीं मूंछ है पूंछ होती तो हिला लेता भ्रष्टाचार के महाकुंभ में कुछ कमा लेता मूंछ मूंछ होती है आज के जमाने में पूछ नहीं होती है तभी तो तमाम मूंछ वाले मूंछे कटा कर दुम बना कर सत्ता के आगे पीछे हिला रहे हैं भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर पाप नाशनी गंगा में नहा कर हर हर चिल्ला रहे हैं जनता की कमाई हर कर  खूब कमा रहे हैं।