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नवंबर 6, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आसमान गिरा

एक दिन आसमान मेरे सर पर गिर पड़ा आसमान के बोझ से मैं दबा और फिर उबर भी गया. आसमान हंसा- देखा, तुम मेरे बोझ से दब गए मैंने कहा- लेकिन गिरे तो तुम !!!

शहर के लोग

तुमने देखा मेरे शहर में मकान कैसे कैसे हैं कुछ बहुत ऊंचे कुछ बहुत छोटे और कुछ मंझोले इनके आस पास, दूर कुछ गंदी झोपड़ियाँ पहचान लो इनसे मेरे शहर के लोग भी ऐसे ही हैं.

माँ और नदी

माँ कहती थीं- बेटा, औरत नदी के समान होती है आदमी उसे कहीं, किसी ओर मोड़ सकता है इस नहर उस खेत से जोड़ सकता है वह नहलाती और धुलाती है अपने साथ सारी गंदगी बहा ले जाती है मैंने पूछा- माँ, नदी को क्रोध भी आता है तब वह बाढ़ लाती है सारे खेत खलिहान और घर बहा ले जाती है  !!! माँ काँप उठीं, बोली- ना बेटा, ऐसा नहीं कहते नदी को हमेशा शांत रहना चाहिए उसे कभी किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए । एक दिन, पिता नयी औरत ले आए घर के साथ माँ के दिन और रात भी बंट गए माँ क्रोधित हो उठी पर वह बाढ़ नहीं बनीं उन्होने खेत  खलिहान और घर नहीं बहाये उन्होने आत्महत्या कर ली चार कंधों पर जाती माँ से मैंने पूछा- माँ तुम खुद क्यूँ सूख गईं विनाशकारी  बाढ़ क्यूँ नहीं बनी कम से कम विनाश के बाद का निर्माण तो होता. लेकिन यह याद नहीं रहा मुझे कि माँ केवल नदी नहीं औरत भी थीं.