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अक्टूबर 8, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऊन उलझी

जाड़ों  में एक औरत स्वेटर बुनती है । फंदा डालना है फंदा उतारना है अधूरे सपनों को इनसे संवारना है हरेक स्वेटर में ज़िंदगी गुनती है। जाड़ा आता है जाड़ा चला जाता है जिसने कुछ ओढा हो उसे यह भाता है। गुनगुनी धूप से भूख कहाँ रुकती है। जिंदगी की स्वेटर में डिजाइन कहाँ उलझी हुई ऊन से सब हैं यहाँ ऐसी ऊन से माँ सपने बुनती है ।

स्वेटर

जाड़ों में स्त्रियाँ स्वेटर बुनती नज़र आती हैं धूप में बैठी हुई बात करती तेज़  गति से सलाई चलाती एक फंदा सीधा, एक उल्टा या कुछ फंदे सीधे और कुछ उल्टे या फिर ऐसे ही गणित के साथ डिजाइन बनाती हैं। स्वेटर लड़की के लिए भी बन रही है और लड़के के लिए भी लेकिन लड़का पहले है कुल का चिराग है कहीं ठंड न लग जाये लड़के की स्वेटर की ऊन भी नयी है लड़की के लिए मिक्स है। लड़के की स्वेटर के डिजाइन में खूबसूरत फूल हैं हाथी घोड़े और चढ़ता सूरज है लड़की के स्वेटर में एक दुबली सी लड़की की डिजाइन है डिजाइन वाली लड़की न जाने हंस रही है या रो रही है मगर स्वेटर पूरी होने को है।  निश्चित रूप से पूरी स्वेटर देख कर पुलक उठेगी मुनिया पिछले जाड़ों में तो छेद वाली ही स्वेटर नसीब हुई थी न!