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बुधवार, 16 अक्टूबर 2013
बुधवार, 1 मई 2013
मैं
मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं,
मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं।
ताकत को मेरी तौलना मत यारो,
महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं।
2
तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है।
जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है।
3
लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक,
होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक।
4
ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले,
कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं।
अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त,
कुछ दोस्त ऐसे भी बनाए जाते।
5
मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा,
जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं।
6.
इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई
केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।
मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं।
ताकत को मेरी तौलना मत यारो,
महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं।
2
तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है।
जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है।
3
लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक,
होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक।
4
ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले,
कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं।
अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त,
कुछ दोस्त ऐसे भी बनाए जाते।
5
मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा,
जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं।
6.
इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई
केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।
सोमवार, 4 फ़रवरी 2013
घर बनाने की बात करें
न तुम कुफ़र करो, न हम पाप करें।
मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें।
लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने
आओ अब इक घर बनाने की बात करें।
हमने जलाया है, खोया है, बांटा है,
आओ अब कुछ जुटाने की बात करें।
मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं,
धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें।
गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे,
आओ कल को सजाने की बात करें।
मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें।
लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने
आओ अब इक घर बनाने की बात करें।
हमने जलाया है, खोया है, बांटा है,
आओ अब कुछ जुटाने की बात करें।
मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं,
धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें।
गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे,
आओ कल को सजाने की बात करें।
शनिवार, 2 फ़रवरी 2013
ग़ज़ल
मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं,
कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है.
2.
रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं,
उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा।
3.
क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको,
इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं।
4.
दुश्मनी करो इस तबीयत से
कि दुश्मन भी लोहा मान ले।
5.
आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर
जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।
कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है.
2.
रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं,
उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा।
3.
क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको,
इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं।
4.
दुश्मनी करो इस तबीयत से
कि दुश्मन भी लोहा मान ले।
5.
आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर
जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।
रविवार, 11 नवंबर 2012
सिर्फ दो पंक्तियाँ नहीं
चाहा था तुमने मेरा दामन दागदार करना
बात दीगर है कि तुम्हारे हाथ मैले हो गए .
वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया,
यही बात समझाना चाहते थे शायद।
बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी
दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं .
दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको
कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको।
मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है,
शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।
बात दीगर है कि तुम्हारे हाथ मैले हो गए .
वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया,
यही बात समझाना चाहते थे शायद।
बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी
दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं .
दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको
कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको।
मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है,
शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।
मंगलवार, 17 जुलाई 2012
बेकार
तुमने मुझे
बेकार कागज़ की तरह
फेंक दिया था ज़मीन पर।
गर पलट कर देखते
तो पाते कि मैं
बेकार कागज़ की तरह
फेंक दिया था ज़मीन पर।
गर पलट कर देखते
तो पाते कि मैं
बड़ी देर तक हवा के साथ
उड़ता रहा था
तुम्हारे पीछे।
उड़ता रहा था
तुम्हारे पीछे।
कभी हवाओं से पूछो कि क्यूँ देती है आवाज़ पीछे से
बताएगी कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया तेरा पीछे।
शनिवार, 7 जुलाई 2012
तुक्का फिट
भागता हुआ पहुंचा उठाने को चिलमन उनकी
मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं।
रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक
रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता।
मेरे आँगन में शाम बाद होती है
पहले उनके घर अंधेरा उतरता है।
देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ।
पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा।
मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं।
सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।
मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं।
रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक
रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता।
मेरे आँगन में शाम बाद होती है
पहले उनके घर अंधेरा उतरता है।
देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ।
पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा।
मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं।
सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।
रविवार, 10 जून 2012
काफिर (qaafir)
जागी हुई आँखों से जैसे कोई ख्वाब देखा है,
वीराने रेगिस्तानों में प्यासे ने आब देखा है।
बेशक नज़र आती हो जमाने को बेहयाई
मैंने उन्ही आंखो में शरमों लिहाज देखा है।
नशा ए रम चूर करता होगा तुझे जमाने
मैंने तो रम के ही अपना राम देखा है।
मजहब के नाम पर लड़ते हैं काफिर से
मैंने बुर्ज ए खुदा में अपना भगवान देखा है।
वीराने रेगिस्तानों में प्यासे ने आब देखा है।
बेशक नज़र आती हो जमाने को बेहयाई
मैंने उन्ही आंखो में शरमों लिहाज देखा है।
नशा ए रम चूर करता होगा तुझे जमाने
मैंने तो रम के ही अपना राम देखा है।
मजहब के नाम पर लड़ते हैं काफिर से
मैंने बुर्ज ए खुदा में अपना भगवान देखा है।
बुधवार, 28 सितंबर 2011
मेरे चार वचन
मेरे चाहने वाले मेरी राहों पर कांटे बिखेरते है
मैं बटोरते चलता हूँ कि कहीं उन्हे चुभे नहीं।
मैं बटोरते चलता हूँ कि कहीं उन्हे चुभे नहीं।
२.
अगर लंबाई पैमाना है तो लकीर सबसे लंबी है,
आदमी जितनी चाहे लंबी लकीर खींच सकता है।
आदमी जितनी चाहे लंबी लकीर खींच सकता है।
३.
मुझे बौना समझ कर हंसों नहीं ऐ दोस्त,
मैं वामन बन कर तीनों लोक नाप सकता हूँ।
मैं वामन बन कर तीनों लोक नाप सकता हूँ।
४.
उन्होने पिलाने का ठेका नहीं लिया है,
तभी तो लोग पीने को ठेके पर जाते हैं।
तभी तो लोग पीने को ठेके पर जाते हैं।
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
मेरा अंदाज़
मेरा अंदाज़
मेरी चाहत से कुछ नहीं होता,
तुम्हारे चाहने वाले बहुत से हैं।
तुम्हें वफाओं से फर्क नहीं पड़ता,
पर दुनिया में बेवफा बहुत से हैं।
तुम लाख न मानो, मानना पड़ेगा,
मेरे जैसे लोग कहाँ बहुत से हैं।
बेशक मेरे पास वह अंदाज़ नहीं,
पर बेअंदाज राजा यहाँ बहुत से हैं
तुम्हारे चाहने वाले बहुत से हैं।
तुम्हें वफाओं से फर्क नहीं पड़ता,
पर दुनिया में बेवफा बहुत से हैं।
तुम लाख न मानो, मानना पड़ेगा,
मेरे जैसे लोग कहाँ बहुत से हैं।
बेशक मेरे पास वह अंदाज़ नहीं,
पर बेअंदाज राजा यहाँ बहुत से हैं
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