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आंसू

आज अभी निकाल दिया दिल से अपने मुझ को एक पल न सोचा कि अँधेरा हो जायेगा दिल में. २ शांत झील में कंकड़ फेंक कर खुश हो जाते तुम, भूल जाते कि कंकडों को डूबने का दुःख होता है. ३  जो हंसते नहीं उन्हें मुर्दा दिल न समझो, न जाने कितनी रुसवाइयां झेलीं हैं उन ने. ४ कुरेद कुरेद कर दिल के घाव तुम तो नेल पोलिश का बिज़नस कर रहे हो. ५ मेरी ईमानदारी को तराजू पर मत तौलो ज़मीर के बटखरे ही इसे तौल पाएंगे. ६ मेरे आंसुओं को इतना तवज्जो मत देना नज़र-ए-बीमारी का सबब है कि बहती हैं.

मैं

मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं, मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं। ताकत को मेरी तौलना मत यारो, महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं। 2 तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है। जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है। 3 लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक, होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक। 4 ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले, कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं। अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त, कुछ दोस्त ऐसे भी  बनाए जाते। 5 मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा, जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं। 6. इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।

घर बनाने की बात करें

न तुम कुफ़र करो, न हम पाप करें। मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें। लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने आओ   अब इक घर बनाने की बात करें। हमने जलाया है, खोया है, बांटा है, आओ अब कुछ जुटाने की बात करें। मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं, धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें। गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे, आओ कल को सजाने की बात करें।

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं, कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है. 2. रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं, उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा। 3. क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको, इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं। 4. दुश्मनी करो इस तबीयत से कि दुश्मन भी लोहा मान ले। 5. आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।

सिर्फ दो पंक्तियाँ नहीं

चाहा था तुमने मेरा दामन दागदार करना बात दीगर है कि  तुम्हारे हाथ मैले हो गए . वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया, यही बात समझाना चाहते थे शायद। बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं . दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको। मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है, शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।  

बेकार

तुमने मुझे बेकार कागज़ की तरह फेंक दिया था ज़मीन पर। गर पलट कर देखते तो पाते कि मैं बड़ी देर तक हवा के साथ उड़ता रहा था तुम्हारे पीछे।   कभी हवाओं से पूछो कि क्यूँ देती है आवाज़ पीछे से बताएगी कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया तेरा पीछे।

तुक्का फिट

भागता हुआ पहुंचा उठाने को चिलमन उनकी मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं। रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता। मेरे आँगन में शाम बाद होती है पहले उनके घर अंधेरा उतरता है। देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ। पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा। मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं। सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।

काफिर (qaafir)

जागी हुई आँखों से जैसे कोई ख्वाब देखा है, वीराने रेगिस्तानों में प्यासे ने आब देखा है। बेशक नज़र आती हो जमाने को बेहयाई मैंने उन्ही आंखो में शरमों लिहाज देखा है। नशा ए रम चूर करता होगा तुझे जमाने मैंने तो रम के ही अपना राम देखा है। मजहब के नाम पर लड़ते हैं काफिर से मैंने बुर्ज ए खुदा में अपना भगवान देखा है।

मेरे चार वचन

मेरे चाहने वाले मेरी राहों पर कांटे बिखेरते  है मैं बटोरते चलता हूँ कि कहीं उन्हे चुभे नहीं। २. अगर लंबाई पैमाना है तो लकीर सबसे लंबी है, आदमी जितनी चाहे लंबी लकीर खींच सकता है। ३. मुझे बौना समझ कर हंसों नहीं ऐ दोस्त, मैं वामन बन कर तीनों लोक नाप सकता हूँ। ४. उन्होने पिलाने का ठेका नहीं लिया है, तभी तो लोग पीने को ठेके पर जाते हैं।  

मेरा अंदाज़

        मेरा अंदाज़ मेरी चाहत से कुछ नहीं होता, तुम्हारे चाहने वाले बहुत से हैं। तुम्हें वफाओं से फर्क नहीं पड़ता, पर दुनिया में बेवफा बहुत से हैं। तुम लाख न मानो, मानना पड़ेगा, मेरे जैसे लोग कहाँ बहुत से हैं। बेशक मेरे पास वह अंदाज़ नहीं, पर बेअंदाज राजा यहाँ बहुत से हैं