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तीन हाइकू : भाव

 ग्रीष्म की धूप  श्रमिक का पसीना परास्त नहीं  ! २- नभ में सूर्य  यात्री संग श्रमिक विश्राम नहीं।  ३-  नभ में मेघ  गली में खेलें बच्चे  प्रसन्न मन । 

अंततः अश्व: तीन हाइकु

अश्व की शक्ति  मनुष्य का मस्तिष्क  घर मे बंधा।  2  अश्व की गति  मनुष्य से स्पर्द्धा मे   कोसों दूर है । 3  अश्व की निष्ठा  मानव का विश्वास  अश्व विजयी। 

प्रकृति के हाइकु

 प्रातः काल मे  सुगंधित पवन  सब जागते।  2  पशु पक्षी मैं  प्रकृति की छांव  सब प्रसन्न । 3  मार्ग मे ओस  पथिक चल रहा  थकान कहाँ।  4  सूर्य उनींदे  पक्षी जाग रहे है  प्रातः हो रही । 5  चंद्रमा अस्त  सूर्योदय की बेला  कुछ क्षण मे ।

हाइकु चार

  साधु जा रहे बह रही वायु भी गति निर्बाध। 2 रोता बालक बादल घिर आये जल ही जल। 3 सब ने कहा बेलगाम था घोड़ा रुकता कैसे! 4 नंगा भिखारी वृक्ष बिना पहाड़ कब ढकेंगे!

माँ दुर्गा - तीन हाइकू

  शक्ति स्वरूपा सिंह वाहिनी दुर्गा  जय जय हो.  २ -  भक्त जागते झिलमिल सितारे  नव रात्रि मे. ३-  नारी शक्ति है  प्रकृति भी नारी  सर्वत्र नारी.  

पांच हाइकू

घने बादल लो सूर्यदेव झांके आशा किरण। ##### आकाश पंछी छूना चाहे क्षितिज लौट आना है। ##### बहती हवा उड़ती घटाएं भी मनुष्य जैसे। ##### सड़क गीली घर- बाहर तक तन भी गीला ।  #### वृक्ष कहाँ हैं चिड़िया बोले कैसे हमारा घर।   

शब्दरंग में प्रकाशित ५ हाइकू

सर्दी पर ५ हाइकू

१-  सर्दी लगती मास्टर की बेंत सी नन्हे के हाथ। २- हवा तेज़ है ठिठुरता गरीब छप्पर कहाँ। ३- बर्फीली सर्दी अलाव जल गया सभी जमे हैं। ४- सूरज कहाँ फूटपाथ सूना है दुबक गए। ५- नख सी हवा मुन्ने की नाक लाल बह रही है। # राजेंद्र प्रसाद कांडपाल, फ्लैट नंबर ४०२, अशोक अपार्टमेंट्स, ५, वे लेन, जॉपलिंग रोड, हज़रतगंज, लखनऊ- २२६००१ मोबाइल -

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई में दिनांक १६ नवंबर २०१४ को प्रकाशित सर्दी पर १० हाइकू

शीत पर १० हाइकू

इस जाड़े में आँखें कहाँ खुलती भोर देर से। २- उषा किरण नन्हे की नाक लाल इतनी ठण्ड ! ३- हवा का झोंका नाक बह रही है प्रकृति क्रीड़ा। ४- सूर्य उदय श्रमिक जा रहे हैं रुकता कौन ! ५- बर्फ गिरती सब सोये हुए हैं चादर तनी। ६- शीत का सूर्य बच्चा आँगन खेले अच्छा लगता। ७- सूर्य कहाँ है घूमने कौन जाये दुबके सब। ८- पत्ते पीले हैं  बाबा भी बीमार है क्या बचेंगे ? ९- हो गयी शाम खिल गए चेहरे निशा आ गयी। १०- चन्द्रमा खिला संध्या थक गयी है गुड नाईट ।             

पांच हाइकू

ठंडी  हवाएं उनकी आहट है कानों को लगी. २- पीला सूरज थके हुए चेहरे शाम वापसी . ३- पेट की भूख सूखे पड़े हैं खेत अनाज कहाँ . ४- पिया न आये मुंडेर पर कौव्वा प्रतीक्षा ख़त्म . ५- दरवाज़ा खुला प्राण निकल गए डॉक्टर आया.

होली हाइकु

होली के रंग साजन संग गोरी लाल गुलाल। 2- होरिया मन कस्तुरी गंध फैली होली आयी रे। 3- पूर्ण चंद्रमा होली जलाते लोग कल होली है। 4- उनींदा सूर्य सिर चढ़ी भंग है होली है भाई। 5- रंगीन पानी बूढ़ा भया जवान होली मनाएँ।

गंगा- हाइकु

सूखती गंगा  पाप बढ़ रहे हैं  धोता कौन है . 2- गंगा निकली  शिव की जटाओं से  भटक गयी। 3- गंगा नदी है  माँ का नाम गंगा  दोनों उपेक्षित . 4- गंगा का पानी  बिसलेरी बोतल  बेचते हम . 5- बहती गंगा  कूदी गंगा  नदी में  दोनों ही ख़त्म .

मेरे पाँच हाइकु

   (१) पपीहा बोला विरह भरे नैन पी कहाँ ...कहाँ.   (२) शंकित मन  गरज़ता बादल बिजली गिरी .   (३) घोर अँधेरा निराश मन मांगे आशा- किरण.   (४) पीड़ित मन गरमी में बारिश थोड़ी ठंडक.   (५) रंगीन फूल हंसती युवतियां भौरे यहाँ भी.