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अक्टूबर 28, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वर्तमान

हमारे अपने है, हमारे द्वारा निर्मित हैं भूत, भविष्य और वर्तमान । हम/अपने भूत को पलट पलट कर देखते हैं/रोते हैं किन्तु, अलविदा नहीं कहते । हम अपने भविष्य को बँचवाते हैं/सपने बुनते हैं/सोचते रहते हैं । हम अपने वर्तमान को देखते नहीं/बाँचते नहीं/सँवारते नहीं उधेड़बुन में बीत जाने देते हैं देखते रहते हैं वर्तमान को भूत बनते और फिर जुट जाते हैं भविष्य बँचवाने/सपने बुनने में  सँवारने में नहीं । भविष्य सँवारने की कोशिश करें भी तो कैसे वर्तमान को तो हम अंधे बन कर लूला लंगड़ा असहाय गुजर जाने देते हैं।