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जून 18, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूकंप

इस शहर में जब आता है भूकंप निकल आते हैं लोग अपने अपने घरों से कुछ लोग इधर तो काफी लोग उधर भाग रहे होते हैं मगर भगदड़ नहीं होती यह क्योंकि लोग लूटने जा रहे होते हैं एक टूटी दुकान का सामान और ले जा रहे होते हैं सुरक्षित अपने ठिकाने में। तब कुछ ज़्यादा काँप रही होती है धरती भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा! उदास मत हो मेघ कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं। बहाने लगते हैं भावनाओं के सैलाब नियंत्रण का बांध तोड़ जाते हैं। नहीं रोक सकूँगा तुम्हें बाहों में बह जाऊंगा तुम्हारे साथ गहराई तक तुम्हारी रिमझिम आँखों में। फिर जाऊंगा कैसे तुम्हारे अंतस में तुम्हें यूं उदास छोड़ कर रोक न सकूँगा खुद को तुम्हारे साथ रोने से इस बारिश की तरह।