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जून 27, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ओ प्रधानमंत्री

ऐ प्रधानमंत्री तुम मुस्कराते नहीं तुम हिन्दी नहीं बोल पाते तुम अपने एसी दफ्तर से निकल कर कभी गाँव शहर नहीं घूमे तुम कार से उतर कर पैदल नहीं चले तुमने कभी किसी बनिए की दुकान से सामान नहीं खरीदा कभी किसी सब्जी वाले से मोलतोल नहीं किया तुमने कभी कीरोसिन के लिए लाइन नहीं लगाई तुम कैसे प्रधानमंत्री हो ! जो अपने आम जन की भाषा नहीं जानता वह उसके दुख दर्द किस भाषा में समझेगा जिसने ज़मीन पर पाँव नहीं रखा वह चटकती धूप की तपन टूटी सड़कों में भरे गंदे पानी की छींट बजबजाते नाले की दुर्गंध  कैसे महसूस कर सकेगा तुम बनिए की दुकान गए नहीं तो महंगाई का मर्म क्या समझोगे तुमने सब्जी वाले से मोलभाव नहीं किया तो कैसे जानोगे कि अब शहर के आस पास सब्जी उगाने के लिए ज़मीन ही नहीं सारी जमीने  सेज़ (एसईज़ेड) की सेज चढ़ गईं तुम कैसे जानोगे कि राशन की दुकान पर अब कीरोसिन बिकता नहीं ब्लैक  होता है ओह प्रधानमंत्री !! शायद अपनी इसी गैर जानकारी के दुख से तुम मुसकुराते नहीं।