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नवंबर 20, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भिखारन माँ

फटे गंदे कपड़ों वाली मैली कुचैली भिखारन उसके हाथों के बीच छाती से चिपकी नन्ही बच्ची बिलकुल गुलाब की कली जैसी सुन्दर कपड़ों में लिपटी हुई बरबस ध्यान आकृष्ट कर रही थी आते जाते लोगों का- इस मैली भिखारन की गोद में                                फूल जैसी गोरी बच्ची कैसे कपडे भी देखो कितने सुन्दर हैं एक का ध्यान गया तो दूसरे से कहा ऐसे ही काफी लोगों की भीड़ इक्कट्ठा हो गयी किसकी हैं बच्ची ? इसकी तो नहीं ही है. कही से उठा लायी है, तभी तो सुन्दर कपड़ों में है. भिखारन को सशंकित निगाहें शूल सी चुभने लगीं क्या यह लोग मुझसे मेरी बच्ची छीन लेना चाहते हैं ? इसलिए भागी लोगों का शक सच साबित हो गया वह पीछे पीछे दौड़े पकड़ो पकड़ो ! बच्ची चोर को पकड़ो कमज़ोर भिखारन भाग न सकी पकड़ ली गयी पोलिस आ गयी, पूछ ताछ करने लगी मालूम पड़ा- भिखारन के साथ किसी अमीर शराबी ने बलात्कार किया था बच्ची इसी बलात्कार की देन थी अस्पताल ...

इंतज़ार

मैंने देखा है प्रतीक्षा करती आँखों को जो बार बार दरवाजे से जा चिपकती थीं। यह मेरी माँ की आंखे थी जो पिता जी की प्रतीक्षा किया करती थीं। वह हमेशा देर से आते माँ बिना खाये पिये उनका इंतज़ार करती हम लोगों को खिला देतीं खुद पिता के खाने के बाद खातीं। पिता आते, खाना खाते फिर 'थक गया हूँ' कह कर अपने कमरे में जा सो जाते। माँ से यह भी न पूछते कि तुमने खाया या नहीं यह तक न कहते कि अब तुम खा लो। मुझे माँ की यह हालत देख कर पिता पर और ज़्यादा माँ पर क्रोध आता कि वह खा क्यूँ नहीं लेतीं। क्यूँ प्रतीक्षा करती हैं उस निष्ठुर आदमी की जो यह तक नहीं कहता कि तुम खा लो। आज कई साल गुज़र गए हैं माँ नहीं हैं फिर भी दो जोड़ी आंखे दरवाजे से चिपकी रहती हैं अपने पति के इंतज़ार में मेरी।