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सितंबर 19, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हारा पन्ना फिर भी

          तुम्हारा पन्ना उस दिन मैं यादों की किताब के पन्ने पलट रहा था. उसमे एक पृष्ठ तुम्हारा भी था. बेहद घिसा हुआ अक्षर धुंधले पड़ गए थे. पन्ना लगभग फटने को था. मगर इससे तुम यह मत समझना कि मैंने तुम्हारे पृष्ठ की उपेक्षा की. नहीं भाई, बल्कि मैंने तुम्हे बार बार खोला है और पढ़ा है.       फिर भी मैंने पाया कि जीवन के केवल दो सत्य हैं- जीना और मरना. मैंने यह भी पाया कि लोग मरना नहीं चाहते,   जीना चाहते हैं . पर जीते हैं मर मर के.