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जनवरी 28, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ का स्पर्श

पत्थर तोड़ने के बाद पसीने से भीगी उस औरत के सीने से चिपकना किसी फूलों भरे बगीचे का अनुभव होता था. स्नेह भरे सर और बदन पर फिरते उसके हाथ कितना कोमल अनुभव देते थे. बाजरे की सूखी रोटी उसके हाथो से कितनी मीठी लगती थी. उसकी क्रोध से भरी डांट भी अपनेपन से भरपूर थी. बुखार से पीड़ित शरीर को उसकी प्रार्थना हल्का कर देती थी. ओ माँ !!! मेरा स्वर्ग छीन कर तुम क्यूँ चली गयी?