रविवार, 1 मई 2011

चुभन

दिन की चुभन कुछ ऎसी होती है,
कि चाँद की चांदनी भी सताया करती है।
हम रात भर करवटे बदलते हैं,
कि ख्वाबों की ताबीर सताया करती है।
इंसानों ने इस कदर बदला खुद को,
मौसम ने बदलना छोड़ दिया है ।
इंसानों की फितरत है कुछ ऎसी
कि फलों ने महकना छोड़ दिया है।

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...