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सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की बजबजाती गली

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की दशा देखनी हो उनकी गली चले जाइए. गली की नाली बज- बजा रही है.  गंदा पानी भरा हुआ है. यह विदेश मंत्री घर का दरवाजा खोलते हैं. पानी भरा देख कर दो काम कर सकते है यहलोग.  या तो सफाई कर्मचारी को बुदबुदाहट में (ध्यान रखियेगा कि यह समस्या इनके सोशल मीडिया पेज पर नहीं आयेगी. सफ़ाई कर्मचारी पर चिल्लाने की औकात नहीं. पैंट की सीयन जो उधडी हुई है) कोसते हुए घर मे दुबक जाएंगे या फिर दूसरों द्वारा लगाई गई ईंटों पर डिस्को करते हुए गुजर जाएंगे. भारत सरकार को विदेश नीति समझाने वाले नाली मे फंसी ईंट या कचरा को डंडे से धकेल कर बाहर नहीं कर सकते ताकि नाली खुल जाये और गली में भरा पानी निकल जाये. इनके कलेजे मे इतनी जान ही नहीं कि बीवी या मोहल्ले वालों या गली के शरारती बच्चों से कह सकें कि कूड़ा नाली मे मत फेंका करो, बच्चों से कह सके कि खेलते हुए ईंट नाली मे मत डालो. हिम्मत ही नहीं है इन सोशल मीडिया वाले विदेश मंत्रियों की.

उनकी घर वापसी

 

विकलांगता विकलांग वर्ष की

 

हम सेक्युलर हैं

१९५९ में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहोवर भारत आये थे. हमारे सेक्युलर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आनंद भवन की पुरानी टट्टी वाले कमरे में उन्हें सुलाया था. खुद फटी हुई शेरवानी और चूड़ीदार पहन रखी थी. चहरे पर फिटकार बरस रही थी. फिर १९६९ मे रिचर्ड निक्सन आये. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने पिता वाला कमोड धो पोंछ कर प्रधान मंत्री आवास के नौकरों वाले कमरे में रख दिया और उसमे निक्सन को ठहराया. उस समय इंदिरा गाँधी अपनी बाई की हुई सिली हुई धोती पहने थी. फटे ब्लाउज से झांकती अपनी लाज बचाने का वह भरसक प्रयास कर रही थी. १९७८ में जिमी कार्टर भारत आये. पूर्व कांग्रेसी मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे. नेहरु इंदिरा विरासत को सम्हालते हुए , उन्होंने वही कमोड और वही सर्वेंट रूम जिमी कार्टर को दे दिया. २००० में बिल क्लिंटन आये. सांप्रदायिक वाजपेयी ने उनका बढ़िया स्वागत किया. डिसगस्टिंग वाजपयी. सेकुलरिज्म को इतनी तो जगह देते की हरे रंग के चिक लगा देते रूम में. २००६ और २०१० में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा भारत आते. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. हमने सांप्रदायिक सरकार के स्व...

आज जन्मदिन : मेरा और जीएसटी का !

१-०७-१९५३ -राजेंद्र प्रसाद कांडपाल का जन्म. ०१-०७-२०१७ - पूरे देश में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानि जीएसटी का जन्म यानि लागू. एक म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी के एसएमएस और फेसबुक से मुझे मालूम हुआ कि आज मेरा सरकारिया तौर पर जन्मदिन है. जोड़ा तो ६५ साल खलास. हे राम ! इतनी उम्र !! कितनों को नसीब होती है. इसलिए मोगाम्बो की तर्ज़ पर कांडपाल खुश हुआ. बहरहाल, मेरी और जीएसटी की एक ही कहानी है. जन्म हुआ तो पापा कहते थे, बड़ा काम करेगा. बेटा हमारा बड़ा नाम करेगा. बेटे ने नाम किया. आज फेसबुक पर सैकड़ों की संख्या में मित्र है. मोदी जी ने जब जीएसटी लागू किया तो उन्हें उम्मीद थी कि जीएसटी बड़ा काम करेगा. सरकारी खजाने को लबालब भरेगा. भर भी रहा है. फेसबुक पर भी जीएसटी के मेरी तरह सैकड़ों मित्र है. आलोचना करने वाले कि रोजगार बंद हो गए. कारोबार ठप पड़ गया. दो रुपये का पॉपकॉर्न मॉल में १०० रुपये में खाने वाले कुछ जीएसटी चुकाने पर मोदी जी को जार जार कोसते हैं. कितना टैक्स देना पड़ता है. दोस्तों, अब मैं थोडा सीरियस हो जाता हूँ. आपने मुझे बिना मांगे बधाइयाँ दी, दुआएं दी. धन्यवाद् आपका. किसको म...

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?

कटप्पा ने अपने महिष्मति राज्य के महाराज और अपनी बहन के बेटे अमरेंद्र बाहुबली को क्यों मारा ? पूरे हिंदुस्तान को यह सवाल पूरे दो साल से मथ रहा था।  एस एस राजामौली ने फिल्म के अंत में कटप्पा से बाहुबली को मरवा कर, खुद उसी के मुंह से यह सवाल पुछवा दिया था कि मैंने बाहुबली को क्यों मारा ! यह इकलौता ऐसा सवाल था,  जिसे सभी पूछ रहे थे। इस  सवाल पर सभी भारतीय थे।  न कोई बिहारी था, न कोई बाहरी।  हर मुंह से अलग सवाल नहीं थे। अन्यथा हमारे देश में तीन तलाक़ क्यों ? बाबरी मस्जिद क्यों ढहाई गई ? बुर्के पर सवाल अलग।  बोलने की आज़ादी क्यों नहीं ? हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर अलग अलग सवाल होते हैं।  यह सवाल ठेठ सांप्रदायिक होते हैं।  मसलन, किसी सवाल को केवल हिन्दू पूछता है तो किसी दूसरे सवाल को सिर्फ कोई मुसलमान ही या फिर सिर्फ सेक्युलर ही पूछता है। अब यह बात दीगर है कि कोई भी किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहता।  सिर्फ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ही ऐसा इकलौता सवाल था, जो पूर्णतया सेक्युलर प्रकृ...

जब क्रोध आये तो......!

क्रोध किसे नहीं आता ! मुझे भी आता है।  आपको भी आता होगा।  क्रोध को इंग्लिश में एंगर और उर्दू में  नाराज़गी कहते हैं।  सेक्युलर अंग्रेजी बोलते हैं।  कहते हैं मुझे एंगर आ रहा है।  मैं एंग्री हूँ।  हिन्दू क्रोध करते हैं और मुसलमान तथा अन्य अल्पसंख्यक नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं।  इसी कारण से हिंदुस्तान में सभी लोग एंग्री यंग या ओल्ड/ मेन/वीमेन हैं।  इस लिहाज़ से यह भी कहा जा सकता है कि क्रोध का कोई धर्म नहीं होता।  वह किसी को भी आ सकता है।  कहीं भी आ सकता है।  लोग स्कूल-कॉलेज, सड़क, दूकान, पार्क या फिर मंदिर और मस्जिद के बाहर भी लड़ सकते हैं।  मंदिर और मस्जिद के बाहर लड़ने के लिहाज़ से एंग्री मेन दो केटेगरी में आ जाते हैं।  जो मंदिर के लिए लड़े, वह सांप्रदायिक होता है।  वह दूसरे धर्म के लोगों को चैन से नहीं रहने दे सकता।  इसे सेक्युलर कथन कह सकते हैं।  मस्जिद के लिए लड़ने वाले लोग शतप्रतिशत सेक्युलर होते हैं।  इनका समर्थन करने  वाले लोग भी सेक्युलर होते हैं।  मस्जिद के लिए की जानी वा...