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शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !



जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील सुब्हानी की बात न मानने के दंडस्वरुप दिवार में चुनवाये जाने का दंड दे दिया।





अब अकबर अनारकली का हाथ पकड़ कर उसे कारागार की ओर लेकर चल पड़ा। तब  साथ चलती अनारकली ने अकबर से कहा - हुजूर, आपको मेरा हाथ पकड़ कर बड़ा मजा आ रहा होगा। आप मन ही मन मुझसे सेक्स करना चाहते होंगे।  कही आपकी यह आग और न भड़क जाए, इसलिए मैं आपको सलीम से सम्बन्धित कहानी सुनाती हूँ। 






जलील सुब्हानी, आपसे अधिक कौन जानता होगा कि मेरा घर कहाँ पर है।  मेरी माँ आपके घर चाकरी करती थी। उसकी पहुँच आपकी बेगमों के कमरों तक थी और आपकी उनके कमरों तक। 






ऐसे में माँ का और आपका मिलना स्वाभाविक भी था। एक दिन ऐसा ही हुआ। उस दिन माँ, अस्तव्यस्त सी पोछा लगा रही थी कि तभी आप कमरे में घुस आये।  वहां आपकी बेगम तो बाथरूम थी, किन्तु,अस्तव्यस्त माँ सामने जरूर थी। 






आपकी लम्पट निगाहों ने उनकी जवानी के हर कोण, गोलाई और मोटाई को नाप लिया। आप कामुक हो गए।  आप मन ही मन गा रहे थे - सलवार के नीचे क्या है ?





किन्तु, हरम में अम्मीजान की सलवार के नीचे झांकना संभव नहीं था। कोई भी बेगम ख़ास तौर पर रुकैया या जोधा आ गई तो बड़ा ग़दर खडा हो सकता था।





अनारकली का इस प्रकार से उनका कच्चा चिटठा खोलना, अकबर को नागवार गुजरा। इससे उनकी कामुकता में थोड़ी कमी आई। अनारकली की कलाई से पकड़ ढीली हुई। 





अनारकली ने आगे सुनाया - आप मौका ढूढने के लिए मेरी अम्मी का पीछा करने लगे। आप मौके की तलाश में रोज उनके पीछे आने लगे। 






एक दिन माँ ने आपको पीछा करते देख लिया।  वह आपके इरादे भांप गई थे।  आप उनके साथ मुताह करते तो कोई बात  नहीं थी। क्योंकि, दासियाँ इसी लिए होती है। किन्तु, दासी पुत्री नहीं।





इसलिए माँ ने मुझे समझाया कि लम्पट सुब्हानी मेरा पीछा करता है।  कभी वह मुझे घर के अंदर दबोच सकता है। इसलिए, जैसे ही वह नामुराद मेरे पीछे आता दिखे तो तुम कमरे में छुप जाना। सामने न पड़ना। मैं  ऐसा ही करती। 





हालाँकि, इस तरकीब से मैं तो बचती रही।  किन्तु, अपनी इस आदत से आप बुरी तरह फंस गए।  आपका चिश्ती दरगाह की कृपा से जन्मा लौंडा सलीम आपसे कम लम्पट नहीं था।  वह आपकी नीयत भांप गया था। इसलिए वह आपका पीछा करने लगा।





वह समझ नहीं पा रहा था कि जब दासी रोज घर आती है, तो आप उसका पीछा क्यों करते है। इसलिए एक दिन जब आप बीमार पड़ने के कारण माँ के पीछे नहीं आये, उस दिन भी वह माँ का पीछा करता रहा। 





एक दिन उसने मुझे देख लिया।  मेरे हुस्न और जवानी ने उसे मोमबत्ती की तरह पिघला दिया।  वह तुरंत मेरे घर आ घुसा।  उसने मुझ से कहा- मेरे अब्बू लम्पट है।  वह हू ला ला और मुता के शौक़ीन है।  वह कभी बीच तुम्हारे साथ मुता कर सकते है। इसलिए तुम मुझे अपना शरीर सौंप दो। मैं अकबर से इसकी रखवाली करूँगा।





मैं मरती क्या करती! सलीम ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और खूब हू ला ला किया। 





इतना सुनते ही अकबर का पारा आस्मान छूने लगा। अनारकली का हाथ उसकी गिरफ्त से छूट गया।  वह जोर से खींचा - मरदूद सलीम तू कहाँ है?





सलीम सामने से दौड़ता आ रहा था।  अनारकली ने सलीम को देखा। वह सरपट उसकी ओर भाग ली।  सलीम अनारकली को लेकर एक बार फिर घोड़े पर सवार हो गया। 

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

कॉलोनी में स्वतंत्रता दिवस !



कॉलोनी में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडारोहण होने वाला था।  मंच सजा हुआ था। एक डंडे पर डोरी से शीर्ष से कम ऊंचाई पर बंधा हुआ राष्ट्रीय ध्वज, स्वयं के खुलने की प्रतीक्षा कर रहा था। 





कॉलोनी के गणमान्य और कम-मान्य लोग आने लगे थे ।  सामने लगी  कुर्सियों पर  बैठते जा रहे थे।  अपने कार्यालय में सदैव विलम्ब से पहुँचने वाले महानुभाव भी समय से पहले पहुँच जाना चाहते थे। किसी ने  नाश्ता भी नहीं किया था।  यह भुखमरी देश-भक्ति या महंगाई का परिणाम नहीं, बल्कि समारोह के पश्चात् मिलने वाले जलपान के लिए थी।





घर में कौन बनाये! नाश्ते के लिए चंदा दिया है।  उसे खाना है।  घर  से खा कर आएंगे तो पैसे बर्बाद हो जायेंगे। इतना चंदा बेकार जाएगा।




 

चंदे की पूरी वसूली हो जाए, इसलिए घर में बच्चों और पत्नी को निर्देश दे कर आये थे कि समय से पूर्व पहुँच जाये। यह नहीं कि इधर उधर खेलने लगे या  पड़ोसिनों से बकबक करने लगे।  नाश्ता ख़त्म हो जायेगा।





इस निर्देश का पालन हो भी रहा था।  बच्चे मंच के पास ही धमाचौकड़ी मचाये हुए थे।  महिलाएं कॉलोनी की महिलाओं के साथ किटी पार्टी और बढती महंगाई पर बातें कर रही थी।  बहुत महंगाई है।





लोग आते जा रहे थे।  आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि नाश्ते की टेबल पर अवश्य जाती।  देखते कि  जलपान में क्या क्या है !  कुछ तो टेबल पर जा कर निकट दर्शन करते। मेज के  पीछे खड़े व्यक्ति से क्या क्या है की पूछताछ करते। और खुश खुश अंदर आ जाते।





 समारोह स्थल पर वातावरण देश-भक्तिमय था। देशभक्तिपूर्ण फिल्मी गाने सप्तम स्वर में बज रहे थे।  एआर रहमान से लेकर मोहम्मद रफ़ी तक, सभी एक घंटे से अपनी आवाज थका रहे थे। बी प्राक ने तेरी मिटटी में मिल जावां की चीख पुकार मचा रखी थी।  अपनी देश भक्ति का परिचय देने के लिए लोग अपने अपने सर झुमा रहे थे।  वातावरण देशभक्तिमय हो चूका था। 





किन्तु, अभी तक मुख्य  अतिथि नहीं आये थे। लोगों की दृष्टि मुख्य गेट पर।  फिर नाश्ते पर।  उसके बाद मंच पर टिक जाती।  कुछ लोग टिप्पणी कर रहे थे - यह इस दिन हमेशा देर से आते हैं।  एक दिन भी समय का ध्यान नहीं रखते।  नाश्ता ठंडा हो रहा है। यद्यपि हो नहीं रहा था। बर्तन के नीचे हलकी आंच जल रही थी। किन्तु नाश्ता गटकने की जल्दी उन्हें बेचैन किये हुई थी। 





तभी सुगबुगाहट हुई।  लो जी मुख्य अतिथि की गाडी गेट अंदर आ रही है।





अब वह उतर रहे है। मोहल्ले के कुछ उनसे कम गणमान्य व्यक्ति अपने से एक डंडा अधिक गणमान्य मुख्य अतिथि महोदय का स्वागत कर रहे थे। थोड़ी देर जलपान के मोह को परे रखते हुए, उन्हें घेर का चला गया। मंच तक लाया गया। इसलिए नहीं कि वह सादर लाये जा रहे थे, बल्कि इस लिए कि बीच में रुक कर कहीं  किसी से बातचीत न करने लगे।  नाश्ते को देर हो जाएगी। 





मुख्य अतिथि मंच पर पहुंचे।  लोगों ने खड़े हो कर उनका जोरदार स्वागत किया।  कुछ ने तालियां भी बजाई।  मुख्य अतिथि प्रसन्न भये।  अपने मोटे होंठो को कान तक खीच कर मुस्कान बिखेरी। 





सब बैठ गए। किन्तु, आगे वालों ने यह ध्यान रखा कि पहले मुख्य अतिथि बैठ जाए। जबकि पीछे बैठे लोग, पहले ही बैठ चुके थे। मुख्य अतिथि ने कहा - बैठ जाएँ। बैठ जाए। यद्यपि  उस समय तक पीछे से लेकर आगे तक लोग अपनी तशरीफ़ कुर्सियों पर रख चुके थे।





मंच संचालक ने  उद्घोष किया- अब स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम का  प्रारम्भ होता है। जोर से बोलिये- भारत माता की जय।  सभी ने, भारत माँ की जय का घोष किया।  पता नहीं उन्होंने किया या नहीं, जो किसी को माँ नहीं मानते।




 

मुख्य अतिथि उठे।  कुछ दूसरे उनसे दो डंडा कम गणमान्य भी उन्हें घेर कर खड़े हो गए।   मुख्य अतिथि ने डोरी खीची।  थोड़ी मेहनत के बाद ध्वज  खुल गया। ध्वज को डोरी से खींच कर शीर्ष पर पहुंचा कर डोरी बाँध दी गई। तालियां बजी। 





जनगणमन  गाया गया।  सब ने गाया।  जिन्हे आता था उन्होने तीव्र स्वर में गाया।  जो नहीं जानते थे. उन्होंने केवल  होंठ हिला कर पार्श्व गायन का लाभ उठाया। राष्ट्र गान समाप्त हुआ। लोगों ने राहत की सांस ली।  भारत माता की जय का फिर घोष हुआ।





सब बैठ गए। किन्तु, मुख्य अतिथि खड़े रहे।  वह चलते हुए मंच पर सजे डायस के माइक्रोफोन पर खड़े हो गए।  पहले ही टेस्ट किए जा चुके माइक को उंगली  से ठकठका कर चेक किया।  आवाज आ रही थी। मुंह माइक के चुम्बन की मुद्रा में ले गए। 





 

मुख्य अतिथि हेलो जेंटलमेन एंड वीमेन कह कर शुरू हो गए।  उनका अंग्रेजों से आजादी के अवसर पर दिया गया भाषण अंग्रेजो द्वारा छोड़ी गई आंग्ल भाषा में था। उन्होंने देश पर संभावित खतरे से लोगों को आगाह किया। स्विट्ज़रलैंड से आई शर्ट पैंट पहने अतिथि ने स्वदेशी के गुण गाये।  लोग  ऊबने लगे थे। नाश्ता..नाश्ता  का शोर शुरू होने लगा।





तभी बारिश प्रारम्भ हो गई। देश को संभावित संकट से सचेत करने वाले मुख्य अतिथि, शायद  बारिश से सचेत नहीं थे।  वह भीगने लगे।  उन्होने झट से भाषण कट शार्ट किया।  जयहिंद बोला। 






तब तक देश की स्वत्नत्रता के लिए मर मिटने का गीत सुन कर झूमने वाले लोग बारिश घबरा कर शेड  ढूंढने लगे।  नाश्ता बड़े शेड के नीचे ही लगाया गया था ।  लोग वहां पहुँच गए। बारिश से बचने से अधिक जलपान चरने के लिए।





स्वतंत्रता दिवस समारोह  बारिश की भेंट चढ़ चुका था। 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की बजबजाती गली

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की दशा देखनी हो उनकी गली चले जाइए. गली की नाली बज- बजा रही है.  गंदा पानी भरा हुआ है. यह विदेश मंत्री घर का दरवाजा खोलते हैं. पानी भरा देख कर दो काम कर सकते है यहलोग.  या तो सफाई कर्मचारी को बुदबुदाहट में (ध्यान रखियेगा कि यह समस्या इनके सोशल मीडिया पेज पर नहीं आयेगी. सफ़ाई कर्मचारी पर चिल्लाने की औकात नहीं. पैंट की सीयन जो उधडी हुई है) कोसते हुए घर मे दुबक जाएंगे या फिर दूसरों द्वारा लगाई गई ईंटों पर डिस्को करते हुए गुजर जाएंगे. भारत सरकार को विदेश नीति समझाने वाले नाली मे फंसी ईंट या कचरा को डंडे से धकेल कर बाहर नहीं कर सकते ताकि नाली खुल जाये और गली में भरा पानी निकल जाये. इनके कलेजे मे इतनी जान ही नहीं कि बीवी या मोहल्ले वालों या गली के शरारती बच्चों से कह सकें कि कूड़ा नाली मे मत फेंका करो, बच्चों से कह सके कि खेलते हुए ईंट नाली मे मत डालो. हिम्मत ही नहीं है इन सोशल मीडिया वाले विदेश मंत्रियों की.

रविवार, 1 मार्च 2020

हम सेक्युलर हैं



१९५९ में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहोवर भारत आये थे. हमारे सेक्युलर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आनंद भवन की पुरानी टट्टी वाले कमरे में उन्हें सुलाया था. खुद फटी हुई शेरवानी और चूड़ीदार पहन रखी थी. चहरे पर फिटकार बरस रही थी.

फिर १९६९ मे रिचर्ड निक्सन आये. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने पिता वाला कमोड धो पोंछ कर प्रधान मंत्री आवास के नौकरों वाले कमरे में रख दिया और उसमे निक्सन को ठहराया. उस समय इंदिरा गाँधी अपनी बाई की हुई सिली हुई धोती पहने थी. फटे ब्लाउज से झांकती अपनी लाज बचाने का वह भरसक प्रयास कर रही थी.

१९७८ में जिमी कार्टर भारत आये. पूर्व कांग्रेसी मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे. नेहरु इंदिरा विरासत को सम्हालते हुए, उन्होंने वही कमोड और वही सर्वेंट रूम जिमी कार्टर को दे दिया.

२००० में बिल क्लिंटन आये. सांप्रदायिक वाजपेयी ने उनका बढ़िया स्वागत किया. डिसगस्टिंग वाजपयी. सेकुलरिज्म को इतनी तो जगह देते की हरे रंग के चिक लगा देते रूम में.

२००६ और २०१० में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा भारत आते. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. हमने सांप्रदायिक सरकार के स्वागत का भरपूर बदला लिया. अमेरिका को साफ़ लिख दिया कि हम टुटपूंजिये है. हमारे पास ओढ़ने और बिछाने को चादर नहीं है. सेकुलरिज्म के प्रतीक कुछ हरे चाँदतारे वाले परदे दे सकते हैं. बाकी का इंतज़ाम आप खुद कीजिये. मौनी बाबा ने घंटा कुछ नहीं किया. बस मैडम और कुमार साहेब और बेटी दामाद के साथ अमेरिकी डिनर और लंच जम कर खींचा. बुश और ओबामा छींक मार गए कि हिन्दुस्तानियों जैसा नंगा कोई नहीं.

पर इस मोदी ने हमारा अब तक का किया धरा सब मटियामेट कर दिया है. इसने गलीचपने की हमारी कोशिशो को पलीता लगा दीया. अमेरिकी समझने लगे हैं कि हम अमीर हो गये है. हमें विकासशील देशों से निकाल दिया है . अब भीख और छूट नहीं मिलेगी. यह मोदी है कि १०० करोड़ बिछा दिए स्वागत में?

हाय हाय कैपिटलिज्म.

रविवार, 1 जुलाई 2018

आज जन्मदिन : मेरा और जीएसटी का !

१-०७-१९५३ -राजेंद्र प्रसाद कांडपाल का जन्म.
०१-०७-२०१७ - पूरे देश में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानि जीएसटी का जन्म यानि लागू.
एक म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी के एसएमएस और फेसबुक से मुझे मालूम हुआ कि आज मेरा सरकारिया तौर पर जन्मदिन है. जोड़ा तो ६५ साल खलास. हे राम ! इतनी उम्र !! कितनों को नसीब होती है. इसलिए मोगाम्बो की तर्ज़ पर कांडपाल खुश हुआ.
बहरहाल, मेरी और जीएसटी की एक ही कहानी है. जन्म हुआ तो पापा कहते थे, बड़ा काम करेगा. बेटा हमारा बड़ा नाम करेगा. बेटे ने नाम किया. आज फेसबुक पर सैकड़ों की संख्या में मित्र है.
मोदी जी ने जब जीएसटी लागू किया तो उन्हें उम्मीद थी कि जीएसटी बड़ा काम करेगा. सरकारी खजाने को लबालब भरेगा. भर भी रहा है. फेसबुक पर भी जीएसटी के मेरी तरह सैकड़ों मित्र है. आलोचना करने वाले कि रोजगार बंद हो गए. कारोबार ठप पड़ गया. दो रुपये का पॉपकॉर्न मॉल में १०० रुपये में खाने वाले कुछ जीएसटी चुकाने पर मोदी जी को जार जार कोसते हैं. कितना टैक्स देना पड़ता है.
दोस्तों, अब मैं थोडा सीरियस हो जाता हूँ.
आपने मुझे बिना मांगे बधाइयाँ दी, दुआएं दी. धन्यवाद् आपका. किसको मिलता है बिना मांगे इतना.
लेकिन, बाज़ार जाइए. दुकानदार आपको बिना मांगे कैश रिसीप्ट नहीं देगा. कहेगा जीएसटी देना पड़ेगा. डरिये नहीं. रसीद ज़रूर मांगिये. जैसे मुझे दुआ दी, वैसे जीएसटी दीजिये रसीद लेकर.
जैसे आपकी दुआएं मेरे काम आयेंगी, वैसे ही जीएसटी देश के काम आयेगी. आप सब को जन्मदिन की शुभकामनाये और जीएसटी देने के लिए आभार.

बुधवार, 31 मई 2017

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?

कटप्पा ने अपने महिष्मति राज्य के महाराज और अपनी बहन के बेटे अमरेंद्र बाहुबली को क्यों मारा ? पूरे हिंदुस्तान को यह सवाल पूरे दो साल से मथ रहा था।  एस एस राजामौली ने फिल्म के अंत में कटप्पा से बाहुबली को मरवा कर, खुद उसी के मुंह से यह सवाल पुछवा दिया था कि मैंने बाहुबली को क्यों मारा ! यह इकलौता ऐसा सवाल था,  जिसे सभी पूछ रहे थे। इस  सवाल पर सभी भारतीय थे।  न कोई बिहारी था, न कोई बाहरी।  हर मुंह से अलग सवाल नहीं थे। अन्यथा हमारे देश में तीन तलाक़ क्यों ? बाबरी मस्जिद क्यों ढहाई गई ? बुर्के पर सवाल अलग।  बोलने की आज़ादी क्यों नहीं ? हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर अलग अलग सवाल होते हैं।  यह सवाल ठेठ सांप्रदायिक होते हैं।  मसलन, किसी सवाल को केवल हिन्दू पूछता है तो किसी दूसरे सवाल को सिर्फ कोई मुसलमान ही या फिर सिर्फ सेक्युलर ही पूछता है। अब यह बात दीगर है कि कोई भी किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहता।  सिर्फ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ही ऐसा इकलौता सवाल था, जो पूर्णतया सेक्युलर प्रकृति का था।  यानि इसे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई और आईएसआईएस सभी पूछ रहे थे।  मज़े की बात यह थी कि सभी अपने अपने तई इसके जवाब भी दे रहे थे।  २८ अप्रैल को, जब बाहुबली का दूसरा हिस्सा प्रदर्शित हुआ, इस सेक्युलर प्रकृति के सवाल का जवाब हर सेक्युलर और कम्युनल को मिल गया।  सभी संतुष्ट भी थे।  हाँ बाहुबली को कटप्पा ने यो मारा ! यहाँ एक ख़ास बात और थी ! ख़ास बात यह कि फिल्म देख कर निकलने वाला हर शख्स सेक्युलर हो कर निकल रहा था। इस प्रकार कि निकलने वाले हर शख्स को मालूम था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? लेकिन बाहर निकल कर सेक्युलर बना इस सवाल का जवाब देने के लिए तैयार नहीं था।  जब भी किसी से पूछा जाता, उसका जवाब एक ही होता- फिल्म देख लो, खुद जान जाओगे। अपने देश में इतनी एकता तो मैंने आजतक महात्मा गांधी तक पर भी नहीं दिखी।  
फिल्म देखने के बाद सभी संतुष्ट थे।  कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? ठीक ही मारा।  वह कंस मामा नहीं था।  भांजे को मारने वाला हर मामा कंस नहीं होता।  शकुनि उदाहरण हैं न ! बेशक अपने सौ भांजो को  मरवा दिया।  लेकिन द्युत क्रीड़ा में तो जितवा दिया।  आमिर खान भी है न ! अपने रद्दी टाइप एक्टर भांजे इमरान खान को पिछले दस सालों से थोपे पड़ा है।  महेश भट्ट भी कहाँ कम हैं।  उन्होंने तो भांजे की चांदी ही चांदी कर दी, मेरा मतलब है चुम्मी ही चुम्मी कर दी है।  एक्टिंग आती नहीं, सीरियल किसर बन कर चालीस  फिल्मों का हीरो बन चुका है।  नई नई हीरोइन तो छोडो, पुरानी हीरोइन भी उसके किस से बच नहीं सकी।  बिपाशा बासु से लेकर विद्या बालन तक सभी को चूम चुका है।  इस लिए पाठकों ! कटप्पा भी हिन्दू होते हुए भी कंस मामा की विरासत से नहीं था।  उसने बाहुबली को जिस कारण से मारा, उससे सभी संतुष्ट थे।  
लेकिन, इस दुनिया में केवल एक शख्स था, जो संतुष्ट नहीं था ! वह शख्स था खुद बाहुबली अमरेंद्र  ! अमरेंद्र बाहुबली  को विश्वास नहीं था कि मामा ने उसे सिर्फ इसलिए मारा।  यह कोई बात हुई कि हिंदुस्तान में सभी सेक्युलर बने कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा के जवाब से संतुष्ट नज़र आ रहे हैं ! कम से कम एक आदमी को तो इस जवाब पर सवाल उठाना चाहिए था। कांग्रेसी बनाने को कौन कर रहा है।  लेकिन, इस जवाब पर तो दिग्गी राजा की तरह व्यवहार करना चाहिए था।  इसलिए बाहुबली असंतुष्ट था।  
बाहुबली स्वर्ग के द्वार पर जा बैठा।  वह इंतज़ार करने लगा कटप्पा के आने का ! कटप्पा ने बाहुबली को मार दिया था, इसलिए स्वभाविक ही बाहुबली स्वर्ग पहुँचने वाला पहला महिष्मति निवासी  था।  चूंकि, कटप्पा को बाद में मरना था इसलिए बाहुबली उसके मर कर स्वर्ग आने का इंतज़ार करने लगा।  
युद्ध में मारे जाने के बाद कटप्पा स्वर्ग पहुंचा।  बाहुबली ने कहा- आओ मामा कटप्पा ! आओ !! 
बाहुबली के बोलने का लहज़ा काफी कुछ शोले वाले गब्बर जैसा था।  सो कटप्पा सहम गया ! 
बोला- भांजे ! उसके बोलने का लहज़ा सीरियल महाभारत के शकुनि गूफी पेंटल के लहजे जैसा था।  वह बाहुबली से लिपट कर रोने लगा।  बाहुबली मामे को रोता देख कर थोड़ा खुश भी था।  अब यह कठोर दिल पिघल कर सब उगल देगा।  बाहुबली कटप्पा की गंजी टांट सहलाने लगा।  
कटप्पा बोला - भांजे अमरेंद्र बाहुबली ! मुझे माफ़ कर देना कि मैंने तुम्हे मार दिया।  एक मामा हो कर मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए थे।  
बाहुबली बोले - मामाआआआ ! हिंदुस्तान में तुम्हारे जैसे बहुत से मामा है।  इसलिए नाहक आंसू मत बहाओ।  बस मेरे एक सवाल का जवाब दो।  
कटप्पा बोला- पूछ भांजे ! 
बाहुबली - कटप्पा तुमने बाहुबली को यानि मुझे क्यों मारा ?
कटप्पा बोला- फिल्म में बताया तो न ! 
बाहुबली गरजा - मामा ! तुमने मुझे मामा समझा है क्या ! मुझे मामा मत बनाना।  मुझे वह जवाब नहीं असली जवाब चाहिए! मैं तुम्हारा भांजा हूँ,  हिंदुस्तानी दर्शक नहीं कि दो साल से जवाब के लिए चुटकुले, कवितायें और सवाल पे सवाल उछलता रहा हूँ और फ़िल्मी जवाब सुन कर खुश हो जाऊं ।  
कटप्पा मुस्कुराया।  ढाल और तलवार जमीन पर रख दी।  कवच कुण्डल, मुकुट उतार कर जमीन पर दे मारे।  फिर अपनी गंजी टांट पर हाथ फेरता हुआ बोला - सुन बेटा, मैंने तुझे क्यों मारा।  पिछले दो सालों से करोड़ों दर्शक इस सवाल का जवाब पूछ रहे थे।  सोशल साइट्स से लेकर सोशल गैदरिंग में यह सवाल पुछा जाता था।  'कटप्पा ने बाहुबली को क्यो मारा' पर जितने चुटकुले पिछले दो साल में बने, उतने चुटकुले पिछले कई सालों से सरदारों पर भी नहीं बने।  अगर बाहुबली द बेगिनिंग के आखिर में यह सवाल न उछाला जाता कि महाराजा अमरेंद्र बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा तो दो साल तक हिंदुस्तान सिर्फ एक सवाल पर इतना सेंस ऑफ़ हुमूर रखने वाला कैसे बन पाता ! मैंने तुम्हे मारा, तभी तो इसे  जानने के लिए तमाम दर्शक हर दिन ज़्यादा से ज़्यादा बेकरार हो रहे थे।  तभी तो बाहुबली द कन्क्लूजन की बुकिंग खुलने के एक घंटे के अंदर दस लाख टिकट बिक गए।  मैंने तुम्हे इसी लिए मारा भांजे ताकि बाहुबली पहले दिन का...वीकेंड का....और पूरे हफ्ते का रिकॉर्ड तोड़े।  सबसे कम समय में सौ करोड़ और दो सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बन जाए।  इसी सवाल का जवाब बाहुबली को दो हजार करोड़ का ग्रॉस करने वाला बना रहा है ।  
अमरेंद्र बाहुबली मान गया - मामे ! तुम सचमुच मामा हो ! इतने सारे हिन्दुस्तानियों को मामा बना दिया।  
जय अमरेंद्र बाहुबली ! जय कटप्पा !! जय सवाल- कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा !!!
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राजेंद्र प्रसाद कांडपाल 
फ्लैट नंबर 804 
अशोका अपार्टमेंट्स 
5 Way  लेन, 
जॉपलिंग रोड, 
हज़रतगंज, 
लखनऊ - 226001 
मोबाइल - 09415560099 

रविवार, 2 अप्रैल 2017

जब क्रोध आये तो......!

क्रोध किसे नहीं आता ! मुझे भी आता है।  आपको भी आता होगा।  क्रोध को इंग्लिश में एंगर और उर्दू में  नाराज़गी कहते हैं।  सेक्युलर अंग्रेजी बोलते हैं।  कहते हैं मुझे एंगर आ रहा है।  मैं एंग्री हूँ।  हिन्दू क्रोध करते हैं और मुसलमान तथा अन्य अल्पसंख्यक नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं।  इसी कारण से हिंदुस्तान में सभी लोग एंग्री यंग या ओल्ड/ मेन/वीमेन हैं।  इस लिहाज़ से यह भी कहा जा सकता है कि क्रोध का कोई धर्म नहीं होता।  वह किसी को भी आ सकता है।  कहीं भी आ सकता है।  लोग स्कूल-कॉलेज, सड़क, दूकान, पार्क या फिर मंदिर और मस्जिद के बाहर भी लड़ सकते हैं।  मंदिर और मस्जिद के बाहर लड़ने के लिहाज़ से एंग्री मेन दो केटेगरी में आ जाते हैं।  जो मंदिर के लिए लड़े, वह सांप्रदायिक होता है।  वह दूसरे धर्म के लोगों को चैन से नहीं रहने दे सकता।  इसे सेक्युलर कथन कह सकते हैं।  मस्जिद के लिए लड़ने वाले लोग शतप्रतिशत सेक्युलर होते हैं।  इनका समर्थन करने  वाले लोग भी सेक्युलर होते हैं।  मस्जिद के लिए की जानी वाली लड़ाई देश को  टुकड़े टुकड़े होने से रोकने के लिए लड़ी जाती है।  इसलिए यह शतप्रतिशत सेक्युलर है और जायज़ है।  इस प्रकार का एंगर कभी सांप्रदायिक व्यक्ति को नहीं आ सकता।  सेक्युलर एंग्री मेन कभी कम्युनल नहीं हो सकता।
मुद्दा यह नहीं कि किसे क्रोध आता है या किसे नहीं।  मुद्दा यह भी नहीं कि क्रोध या क्रोधी व्यक्ति सेक्युलर हैं या कम्युनल ! यह शब्द तो मौके की नज़ाकत और लोगों की सोच के अनुसार उपयोग किया जाते हैं।  मुद्दा यह है कि क्रोध आ गया तो क्या करें ? कहाँ जाये ? कैसे आये चैन ? अब फिर सेकुलरिज्म और कम्युनलिस्म का मुद्दा खड़ा हो गया।  क्रोध आने पर क्या होगा ? आदमी ज़ोर ज़ोर से चिल्लायेगा- चीखेगा।  दीवार पर हाथ दे मारेगा।  ऐसा व्यकित अहिंसा का पालन करने वाला ही हो सकता है।  ऐसा आम तौर पर, घर में लड़ाई झगड़े के दौरान ही  क्रोधी व्यक्ति अहिंसक हो सकता है। क्रोध बाहर आ जाये तो ! तब तो बहुत कुछ हो सकता है।  पार्क में बच्चों के बीच झगड़े में बच्चों को समझाने के बजाय बड़ों का बच्चों की तरह भिड़ जाना, निहायत अहमकाना और बचकाना कहा जा  सकता है।  यह हिंसक क्रोध होता है।  यानि ऐसे एंग्री मेन केवल मुंह जबानी नहीं, हाथ पांवों से भी भिड़ लेते हैं।  अब अगर क्रोध मंदिर मस्जिद को लेकर आ जाये तो दंगा हो जाता है।  यह दंगा सांप्रदायिक कहलाता है। ऐसे दंगों को कोई भी सेक्युलर या कम्युनल खिताब नहीं देता।  मगर लाशें ज़रूर गिनी जाती हैं।  फलां दंगे में कितने मरे ! इसमें से कितने मुसलमान थे या कितने हिन्दू थे।  अगर मरने वालों में मुसलमानों की संख्या ज़्यादा है तो हिन्दू खुश होगा।  अगर मरने वालों में हिन्दू ज़्यादा हैं तो मुसलमान खुद को जेहादी समझ लेगा।
बहरहाल, मेरा मकसद क्रोध नियंत्रित करने या एंगर मैनेजमेंट के बारे में जानना और बताना है।  क्रोध आता है तो क्या करें ? अलग अलग लोग, अलग अलग तरीके से एंगर मैनेजमेंट करते हैं।  कहा जाता है कि क्रोध आने लगे तो एक से दस तक गिनती गिनना शुरू करो।  क्रोध ख़त्म हो जायेगा।  लेकिन, अब यह तरीका कारगर नहीं रहा।  अब तो लोगों की गिनतियों की संख्या १०० को पार कर जाती है, क्रोध का पारा १०० डिग्री सेल्शियस पहुँच जाता है।  कुछ टीवी देखने लगते हैं। इसमें टीवी टूटने का भय बना रहता है।  कुछ टहलने बाहर निकल जाते हैं।  यह कारगर हो सकता है, लेकिन कभी पूरी रात भी बाहर गुजर सकती है।  ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरे इंडोर उपाय क्या हैं? मैं तो भाई फेसबुक पर जाने लगा था।  वहां भड़ास निकाल दो।  मगर यह तरीका कारगर साबित नहीं हुआ।  एक तो फेसबुक पर गुस्सा दिलाने वाली ऐसी पोस्टें लगी रहती हैं कि क्रोध नियंत्रण क्या होगा ! जी करने लगता है कि लैपटॉप ज़मीन पर चकनाचूर कर दो।  ऎसी कोई पोस्ट नहीं मिली तो भी आपकी पोस्ट पर ऐसे कमैंट्स आ सकते हैं कि आप क्रोध में अपने बाल नोचने लगे।  जो लोग अपने घर को नहीं सम्हाल सकते, वह मोदी जी को देश को सम्हालने के नुस्खे बताने लगते हैं। आपको भी ऐसे ही नुस्खे देने लगते हैं।  
जब कोई बात गुजर जाए, पानी सर के ऊपर चला जाये तो समझ लेना यार कुछ गड़बड़ है।  यह सोच कर मैं अपने दास मलूका दोस्त से मिलने पहुँच गया। अमूमन समस्या समाधान के लिहाज़ से मैं दास मलूका के पास ही जाता हूँ।  इन्ही दास मलूका दोस्त के कारण मैं चाकरी और अजगर का रिलेशन  जान सका ।   नौकरी में हरामखोरी का कारण जान पाया। मैं दास मलूका की अँधेरी कोठारी में घुसा।  यकीन जानिये दास मलूका का एंगर मैनेजमेंट का फार्मूला गजब का साबित हुआ।   दास मलूका ने चरस में  डूबी  अपनी आँखों को आधा खोला ।  मुझे देख कर मुस्कुराये।  बोले, "सिगरेट  लाया है ?" मैं, सिगरेट के लिहाज़ से नितांत सूफी व्यक्ति भी, दास मलूका से मिलने के लिए जेब में सिगरेट धर कर जाता था।  मैंने सिगरेट आगे कर दी।  दास मलूका ने सिगरेट जला कर एक कश मारा और आँखे बंद किये ही पूछा, " तू बेमतलब तो मुझे सिगरेट पिला नहीं रहा होगा ?" मैं जल भुन गया। जी चाहा कि इस मलूका की दाढ़ी जला दूँ। पर एंगर मैनेजमेंट करता हुआ बोला, "नहीं, आपकी याद बहुत आ रही थी।" मलूक उवाचे, "ठीक है।  अब बता क्यों याद आ रही थी ?" मैंने अपना सवाल सामने रख दिया कि एंगर मैनेजमेंट कैसे करें!
दास मलूका ने एक लंबा कश खींचा।  फिर दो मिनट के पॉज के बाद बोले, "जब क्रोध आये तो याद कर अपनी पैदाइश को।  याद कर तेरे जन्म लेने पर तेरे माता-पिता और प्रियजन खुशियां मना रहे थे।  लेकिन तू सदा का विघ्न संतोषी चींख चींख कर रोने लगता था ।  होना तो यह चाहिए था कि तेरे माँ-बापू में से कोई तेरे कान के नीचे बजा देता।  लेकिन,  तेरे बड़े होने पर तेरी छड़ी से पिटाई करने वाले तेरे पिता बिलकुल क्रोधित नहीं थे।  वह तुझे दुलार रहे थे, 'नांय नांय लोते नई'  पुचकार रहे थे, 'बिलकुल अपनी माँ पर गया है।  चुप ही नहीं होता।' अगर उन्हें उस समय क्रोध आया होता तो तू आज सवाल पूछने के लिए बाकी नहीं होता।  इस बात को क्रोध आने पर याद कर।  एंगर मैनेजमेंट शतप्रतिशत हो जायेगा।"  
मेरे ज्ञान चक्षु खुल चुके थे।  मैंने मलूक दास की इस सीख को अखबार के लिए लेख बद्ध कर दिया। अपनी फेसबुक पेज पर डाल दिया।  सभी केटेगरी के क्रोधी, नाराज़ और एंग्री मेन लोग इस तरह एंगर मैनेजमेंट करें।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...