शनिवार, 9 जुलाई 2011

मैं और समुद्र


समुद्र में मिल जाने के बाद,
मुझे एहसास हुआ,
समुद्र में खो जाने का,
खुद के अस्तित्व के मिट जाने का।
दुखी हो रहा था कि
मेरा अस्तित्व बरकरार नहीं रह सका ।
मैं अब मिट गया हूँ।
मै युही
दुखी हो रहा था कि,
एक तिनका बहता हुआ पास आया,
बोला-
दुखी क्यूँ हो रहे हो?
तुम समुद्र में विलीन नहीं हुए हो,
तुमने अपनी जैसी बूंदों से मिल कर
इस समुद्र को बनाया है।
मुझे देखो,
मैं तुम्हारे कारण ही तो तैर रहा हूँ,
डूबते हुओं का सहारा बनने के लिए।
तुम न होते तो समुद्र नहीं होता,
मैं नहीं होता ।
तब कौन बनता डूबतों का सहारा?
अब मैं समुद्र बन कर खुश हूँ।
तिनके को तैरा रहा हूँ।

कितने प्रश्न !

ईश्वर का वरदान
एक दिन,
ईश्वर प्रकट हुए ।
बोले-
वत्स, तू मेरी दुनिया का
सबसे संतोषी प्राणी है।
मैं तुझसे बहुत खुश हूँ,
मांग, मुझसे क्या मांगता है?
तबसे
आज का दिन है,
मैं,
परेशानहाल घूम रहा हूँ,
यह सोचता हुआ
कि ईश्वर से क्या माँगूँ।
पूर्णविराम या फुलस्टॉप
वह बोले,
सब खत्म हो गया।
मैंने पूछा-
पूर्णविराम या फुल स्टॉप ?
सुख या दुख ?
मैंने
एक मरते आदमी की आँखों में झाँका,
घोर निराशा थी,     
मोह से पैदा हुई,
सब कुछ छूट जाने के कष्ट से।
उस आदमी ने,
बेहद खुशी खुशी,
ज़िंदगी भर कमाया था,
ढेरों पैसा, घर, बंगला और कार जमाया था ।
क्या इसीलिए कि
आज जब
यह मर रहा है,
तब दुनिया का सबसे दुखी प्राणी है।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...