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फ़रवरी 26, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बादशाह

लालकिले की प्राचीर से एक प्रधानमंत्री तिरंगा फहराता है और भाषण देता है लाखों लाख लोग देखते सुनते हैं टीवी के जरिये और कुछ हजार कुछ सौ मीटर दूर नीचे बैठे हुए . उसके और जनता के बीच दूरियों की  ही नहीं बुलेट प्रूफ की बाधा भी होती है वह जनता का स्पर्श क्या पसीने की गंध तक महसूस नहीं कर पाता इसीलिए विद्युत् तरंगो से होता हुआ उसका सन्देश जन मानस को मथ नहीं पाता लेकिन इसमें प्रधानमंत्री की क्या गलती गलती पैंसठ साल पहले हुई थी जब स्वतंत्रता का ध्वज उस लालकिले की प्राचीर से फहराया गया था जिसे एक बादशाह ने हजारों मजदूरों का पसीना सोख कर बनवाया था. इसके बनाने वाले मजदूर किसी झोपड़ी में आधे अधूरे सो रहे थे और बादशाह आराम से था अपने महल में जनता और बादशाह के बीच की यह दूरी ही तो आज भी बनी हुई है.

द्रौपदी

महाभारत में पढ़ा था दुश्शासन ने खींची थी द्रौपदी की चीर लाज बचने के लिए चीखती रही थी द्रौपदी मूक बैठे रहे थे पितामह और पांडव ध्रतराष्ट्र तो वैसे ही अंधे थे गांधारी ने नेत्रों पर कपड़ा बाँध लिया था. तब कृष्ण ने किया था चमत्कार बढ़ती चली गयी थी द्रौपदी की चीर नींची होती गयी थी कौरव पांडवों की निगाहें दुश्शासन थक कर चूर हो गया था. मगर आज के भारत में न जाने कितनी द्रौपदियों की चीर खींची जाती है अब कृष्ण चमत्कार नहीं करते द्रौपदी की लाज बचाने को . आजकल वह अपने सुदर्शन चक्र की जंग उतार रहे हैं। आधुनिक द्रौपदी की छः गज से भी कम की फटी साड़ी पल में ज़मीन पर बिखर जाती है पार्श्व में शीला की जवानी गीत बजता रहता है कौरवों के साथ पांडव भी कनखियों से देखते आनंदित होते हैं कोई खुल के कुछ नहीं बोलता क्यूंकि हम्माम में सभी नंगे हैं इसीलिए दुश्शासन भी कभी थकता नहीं आज के महान भारत का.