शुक्रवार, 27 मार्च 2015

हैरान सूरज

सूरज हैरान
क्रोध से तपता
जलती धरती
सब बेचैन
वृक्ष मुरझाये से
पशु-पक्षी दुबके हुए
सडकों पर सन्नाटा
तारकोल आँसू बहाता
पर, सबसे निरपेक्ष
एक कृशकाय
सड़क को नापता
पैरों में टायर की टूटी चप्पल
कपडे की डोर से बाँधी हुई
ऊपर समेटी हुई लुंगी 
छिदही बनियाइन से
बह रहा था
पसीने का झरना
आँखों में आते पसीने की बूँद को
एक हाथ से झटक देता
ठेला खड़ा कर
सर से उतारता है
तौलिया
मुंह और हाथ पैर का पसीना पोंछ
ऊपर देखता है
सूरज को
हाथ जोड़ता है -
हे भगवन !
सूरज हैरान है !!

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...