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फ़रवरी 7, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

साथ मेरे

अँधेरे में साथ छोड़  जाता था साया भी मेरा चलता था लड़खड़ाता मैं अँधेरे में फिर मैंने थामा साथ एक दीपक का आज साया न सही हज़ारों चलते हैं साथ मेरे।  

मैं भी !

बचपन में जब घुटनों से उठ कर लड़खड़ाते कदमों से चलना शुरू किया था सीढ़ी पर तेज़ चढ़ गए पिता की तरह मैं भी चढ़ना चाहता था पिता को सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर मैं हाथ फेंकता हुआ कहता- मैं भी ! पिता हंसते हुए आते मुझे बाँहों में उठा कर तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते मैं पुलकित हो उठता खुद के इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर अब मैं अकेला ही चढ़ जाता हूँ सीढ़ियां पर  खुश नहीं हो पाता उतना क्योंकि, पिता नहीं हैं मैं खड़ा हूँ अकेला बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से - मैं भी !