सोमवार, 14 जुलाई 2025

कही कोई किसी के बच्चे के लिए ऐसे कहता है !




कभी अतीत के पृष्ठ पलटो तो कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादें कौंध जाती है। जीवन है।  समाज है।  हेलमेल। आना जाना। सम्बन्ध है। क्रिया प्रतिक्रिया होती रहती है।  इस प्रक्रिया में कुछ ऐसे अनुभव हो ही जाते है।





हम ऎसी कुछ स्मृतियाँ याद रखते हैं। कुछ बिसार दिया जाना चाहते  हैं। कुछ ऐसे अनुभव होते हैं, जिन्हे पुनः पुनः स्मरण करना बड़ा भला लगता है।  कुछ को विस्मृत कर देने का मन करता है।






किन्तु, इस अनुभव को क्या कहें ? क्या इन्हे भुला दिया जाए या याद रखा जाये ! यह मेरा निजी अनुभव या जिया हुआ क्षण नहीं है।इसे मुझे बताया गया। मेरी माँ ने बताया।  अपना अनुभव।  जिसे मैंने अनुभव किया।






मैं अपने इस अनुभव को एक कथा के रूप में आपके समक्ष रखता हूँ। कदाचित इस प्रकार से आप सुनना या पढ़ना चाहेंगे। स्मृतियों या विस्मृतियों का इतना आकर्षण नहीं, जितना कथा का होता है।






कथा एक माँ और उसके बच्चे की है।






बच्चा कोई बड़ा नहीं। अबोध शिशु।  कठिनाई से कुछ महीने का होगा।  माँ के आँचल में स्वयं को सुरक्षित अनुभव करने वाला। पूरा पूरा दिन, माँ के साथ खेलता, किलकारी भरता और रोता -खाता !






हुआ यह कि उस अबोध बालक के मूत्र थैली के निकट एक लाल दाना सा उभरा।  माँ ने नहलाते समय उसे साफ़ किया।  फिर कुछ लगा दिया।





कुछ दिन ठीक।  अचानक फिर उभरा।  इसे के बाद, एक के बाद एक कई दाने उभरते चले गए। वह लाल दाने फैलते गए।  दर्द करने वाले बन गए। बालक दर्द से बिलखता।  माँ उससे अधिक बिलख जाती।





घरेलु ईलाज से कोई लाभ न होता देख कर, माँ उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने जांच की।  पाया कि यह एक्जिमा था।  डॉक्टर ने दवा लिख दी।  किन्तु, दवा से कोई लाभ नहीं हुआ।  एक्जिमा पूरे शरीर में फैलता चला गया। एक समय ऐसा आया कि अबोध शिशु का पूरा बदन सड़ गया।  माँ उसको हाथ में उठती तो खाल हाथ में आ जाती।  माँ बच्चे की इस दशा पर रो पड़ती। बच्चे का रुदन माँ को एक पल भी चैन न लेने देता।





पैसे कम थे।  निजी चिकित्सक को दिखाना संभव नहीं हो पा रहा था। उस पर दवा से लाभ भी नहीं हो रहा था। इसलिए, माँ ने बच्चे को मेडिकल कॉलेज दिखाने का निर्णय लिया। कुछ शुभचिंतकों ने बताया भी था कि मेडिकल कॉलेज में स्किन डिपार्टमेंट बहुत अच्छा है। सटीक ईलाज हो जायेगा। कोई पैसा भी नहीं देना पड़ेगा।  सब निःशुल्क।






मेडिकल कॉलेज घर से दूर था।  पैसे की कमी थी। किन्तु, माँ को इसकी चिंता नहीं थी।  उसे अपने बच्चे को किसी भी प्रकार से ठीक करना ही था।  इसलिए वह उसे हाथों के बीच रख कर मेडिकल कॉलेज निकल पड़ी।






जैसा कि बताया कि पैसे की कमी थी। घर से मेडिकल कॉलेज पांच किलोमीटर से अधिक दूर था। रिक्शा पर ले जाना खर्चीला था। किन्तु, माँ को इससे कोई सरोकार नहीं था। उसे तो बस मेडिकल कॉलेज जाना ही थी।





माँ ने बच्चे को एक बारीक कपडे से ढका और पैदल ही निकल पड़ी मेडिकल कॉलेज की ओर। कड़ी धुप थी। सड़क तप रही थी। माँ पसीना पसीना हो रही थी।  किन्तु, उसे किंचित भी कष्ट अनुभव नहीं हो रहा था। पर वह उस समय बिलख उठती, जब बच्चा धुप की गर्मी से बेचैन हो कर रोने लगता। माँ उसे सीने से लगा कर कहती - बेटा बस पहुँच ही रहे है।





अस्पताल में लम्बी लाइन थी।  डॉक्टर के कमरे के बाहर लम्बी लाइन लगी थी।  माँ परचा बनवा कर लम्बी लाइन में खडी हो गई।





कुछ औरतों ने देखा।  पूछा - किसे दिखाने आई हो ?





अपने बेटे को - माँ ने संक्षिप्त उत्तर दिया।





औरतों में उत्सुकता बढ़ी।  एक गोद के बच्चे को एक्जिमा !!!





 देखें ज़रा।  माँ ने कपड़ा हटा दिया।





औरतें चीख उठी।  बच्चे के सड़े हुए चेहरे के बीच केवल दो काली काली आँखे जीवंत दिखाई दे रही थी।  अत्यंत वीभत्स दृश्य था।





औरते स्तब्ध। बिलख उठी।  बच्चा रो पड़ा।





औरतें हाथ जोड़े, आकाश की ओर देख कर कह रही थी - हाय हाय ऎसी औलाद देने से अच्छा होता यदि न ही देता।





माँ ने क्रोधित  दृष्टि से उन्हें भस्म कर देना चाहा।  औरतें सहम कर हट गई।




                               X                   X              X

कहानी अब ख़त्म।





इसके आगे क्या! बच्चा आज भी जीवित है।  माँ की उम्र से बड़ा हो गया है। किन्तु, माँ स्वर्गवासी हो चुकी है।





बच्चे ने माँ के दुःख को उनके मुंह से सुना है।  एक बार नही बार बार सुना है। माँ का ऐसा दुखद  अनुभव! इसे अनुभव कर ही वह बिलख उठता है।  सहम जाता है। उद्विग्न हो जाता है।





कही कोई किसी के बच्चे के लिए ऐसे कहता है !

इकन्नी !

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