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अप्रैल 14, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐ पिता !!!

ऐ पिता ! तेरी बाँहें इतनी मज़बूत क्यों हैं कि जब कोई बच्चा हवा में उछाला जाता है तो वह खिलखिलाता हुआ उन्ही बाँहों में वापस आना चाहता है. तेरी भुजाएं इतनी आरामदेह क्यों होती हैं कि कोई बच्चा इनमे झूलता हुआ सो जाना चाहता है ऐ पिता !! तेरी उंगलियाँ पकड़ कर वह लड़खड़ाता हुआ चलना सीखता है तेरी उंगलियाँ पकड़ कर बड़ा होना चाहता है इतना बड़ा कि तेरे कंधे तक पहुँच सके. मगर ऐ पिता !!! इस बच्चे की बाँहें इतनी कमज़ोर क्यों होती हैं भुजाएं इतनी कष्टप्रद क्यों होती हैं कि कोई पिता इनमें समां नहीं पाता, आराम नहीं पा सकता क्यों बेटे की उंगली यह बताने के लिए नहीं उठ पातीं कि वह मेरे पिता हैं. क्यों ! क्यों !! क्यों !!! ऐ पिता, यह बात तो बेटा उस समय भी समझ नहीं पाता जब वह अपने बेटे को हवा में उछाल रहा होता है भुजाओं में समेटे सुला रहा होता है उंगलिया पकड़ कर चलना सिखा रहा होता है. ऐ पिता ! ऐसा क्यों होता है यह पिता ???

दादी

''माँ तुम तो राजू के लिए कुछ ज्यादा प्रोटेक्टिव हो. वह अब इतना बच्चा भी नहीं रहा कि हर समय देखना पड़े. बच्चा है. खेलेगा तो गिरेगा भी, चोट भी लगेगी. तुम इतना फ़िक्र क्यों करती हो?'' पिताजी दादी से कह रहे थे. मुझे बहुत अच्छा लगा. दादी हर समय टोकती रहती है. यह न करो, वह न करो. तो करो क्या. साथ के बच्चे मज़ाक उड़ाते हैं 'क्या हाल हैं यह न करो बच्चे के'. मैं खिसिया जाता. दादी से मना करता पर  वह कहाँ सुनने वाली थीं. दादी मुझे फूटी आँख न सुहाती. सच कहूँ मुझे उनका झुर्रियों भरा चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता. वास्तविकता तो यह थी कि मैं खुद के बुड्ढे हो जाने के ख्याल से घबरा जाता था. शीशे में चेहरा देखता, झुर्रियों की कल्पना करता तो सिहर उठता. क्यों जीते हैं लोग इतना कि चेहरे पर समय की मार नज़र आने लगती है. दादी का चेहरा छोटा था. झुर्रियां होने के कारण मुझे बड़ा अजीब सा लगता. जैसे किसी अख़बार के कागज़ को बुरी तरह से मसल कर फेंक दिया गया हो. इस चिढ का एक बड़ा कारण यह भी था कि दादी हर दम मेरे पीछे लगीं रहती. वैसे वह मेरी पैदायश से मेरा ख्याल रखती रही हैं. माँ नौकरी करती थी...