बुधवार, 23 नवंबर 2011

एक सौ हम

हम दोनों के बीच
लम्बे समय की संवादहीनता के कारण
बड़ा सा शून्य बन गया था.
पर हम
इस शून्य में उलझे नहीं
इससे खुद को गुणा नहीं किया
शून्य से खुद को घटाया नहीं
शून्य को बांटने की कोशिश भी नहीं की
क्यूंकि हर दशा में हम
खुद शून्य हो जाते
हम खुद भी  
शून्य के पीछे नहीं लगे
हमने शून्य को अपने पीछे लगाया
तब शून्य के कारण
दस गुणा समझदार हो गए हम
फिर हम मिले
न किसी को घटाया बढाया
न अपने से बांटा
जोड़ा भी नहीं
सिर्फ
एक दूसरे को गुणा किया
और एक सौ हो गए.


क्यूँ ???

क्या
ईश्वर ने
बीज,पौंधे, पेड़, पशु-पक्षी और मनुष्य
इसलिए बनाये कि
पौंधा पेड़ बन कर बीज को सुखा दे?
शेर मेमने को निगल ले,
बाज मैना को झपट जाए?
ताक़तवर कमज़ोर को सताए
मनुष्य जीवित मनुष्य को मृत कर दे?
अगर ब्रह्मा को
अपनी पृकृति यूँ ही ख़त्म करनी होती
तो पालने और रक्षा करने वाले
विष्णु क्यों बार बार जन्म लेते
ब्रह्मा ही
खुद शंकर बन कर
अपनी पृकृति स्वयं नष्ट न कर देते?

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...