गुरुवार, 5 मई 2011

दोस्तों

ज़िन्दगी को इतना प्यार न कीजिये कि छूटने से डर लगे।
साँसों को इतना प्यार न कीजिये कि टूटने से डर लगे।
जो बना है वह एक दिन बिखरेगा भी,
उदासियों को इतना गले न लगिए कि हंसने से भी डर लगे।
दोस्तों हम किसी से कहते नहीं,
कि हमें कहने से डर लगता है।
दोस्तों हम किसी से छुपते नहीं,
कि बाहर आने से डर लगता है।
अब दोस्तों कुछ ऐसा हो गया है,
हम छुपते नहीं और डर नहीं लगता है।

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...