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नवंबर 1, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अर्जुन

यह शब्द तब तक हमारे हैं जब तक यह मुंह के तरकश से निकल कर जिव्हा की कमान से छोड़े नहीं जाते लेकिन यह तब घातक हो जाते हैं, जब अनियंत्रित और खतरनाक तरीके से सामने वाले पर छोड़े जाते हैं उस समय इनसे घायल हो कर न जाने कितने भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु की बाट जोहते हैं लेकिन तब भी घमंड भरा अर्जुन अपने  गाँडीव का रक्त पोंछता हुआ अगले कुरुक्षेत्र की  तैयार में जुट जाता है.