सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त 16, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सान

कातिलों के बाजुओं की फिक्र नहीं मुझे, हथियारों में उनके इतनी सान नहीं होती है। डर लगता है उन बददुआओं के नश्तरों से मुझे जिन बेबसों की कोई जुबान नहीं होती है।

पांच क्षणिकाएं

किसी ने देखा नहीं कोई देखता भी नहीं लेकिन देखो तो तुम्हारी चौपाल में कैसे कैसे लोग कैसे कैसे फैसले लेते हैं लोकतंत्र हत्यारे अपराधियों को बचाते हैं खुद को लोक सभा कहते हैं. (२) सेनाएं कभी नहीं हारतीं हारते हैं वह लोग जो डरते हैं मौत से।  (३) प्रधानमंत्री ने आज़ाद कर दिया रस्सी खींच कर हवा में झंडे को।  (४) मांसाहारी होते हैं वो जो लोगों को समझते हैं भेड़ बकरी। (5) आम तौर पर मरते हुए लोग आँख खोल कर इसलिए नहीं मरते, कि, उन्हे मोह है रहता है इस दुनिया का ! बल्कि, खुली रहती है उनकी आँखें इस आश्चर्य में कि इतने सारे लोग  फिर भी ज़िंदा रहेंगे। जो शाम निकले थे सुबह की किरण ढूँढने रात सो कर सुबह के उजाले में खो गए। जिन्होंने जलाये रात जाग जाग कर सूरज हजारों ख्वाबों हो गये.