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जून 29, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दांत, बच्चे और कोख

मैं बबूल हूँ मेरे नज़दीक रहो कांटे चुभेंगे स्वाद में कड़वा हूँ फिर भी सलामत रहेंगे तुम्हारे दांत ! २- जीत रहा था मैं फिर भी हार गया  क्योंकि, उन्हें हारना पसंद नहीं बच्चे ऐसे ही होते हैं. ३-  कोख किराये की नहीं होती कोख माँ की होती है.

दर्द

उफ्फ! सांप काटता है तड़पता है कुछ तो बात है आदमी में. २- जो उतारता है ज़हर   कितना होगा उसमे ज़हर ! ३- नींद सपना और आँखें पहले कौन! ४- धूमकेतु राजनीति के हैं बहुतेरे  पूंछ हिलाते हुए . ५- माँ का दर्द महंगाई नहीं भ्रष्टाचार है जेब भर लाता है रोज बेटा .