शनिवार, 8 सितंबर 2012

दीवानगी

जहां लोग
माथा टेकते हैं,
वह मंदिर है।
जहां लोग
माथा रगड़ते हैं,
वह मस्जिद है।
जहां लोग
घुटने टेक कर
अपराधों की क्षमा मांगते हैं,
वह चर्च है।
लेकिन,
समझ नहीं सका मैं,
जहां लोग पी कर लोटते हैं
उस मयखाने से
कोई नफरत क्यों करता है?
दोनों ही दीवाने हैं
एक ईश्वर, अल्लाह और खुदा का
दूसरा
उस ईश्वर, अल्लाह और खुदा की बनाई
अंगूर की बेटी का।
दीवानगी और दीवानगी में यह फर्क
दीवानापन नहीं तो और क्या है
कि हमे
मयखाने के दीवानों की दीवानगी की
इंतेहा से नफरत है।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...