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सितंबर 8, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दीवानगी

जहां लोग माथा टेकते हैं, वह मंदिर है। जहां लोग माथा रगड़ते हैं, वह मस्जिद है। जहां लोग घुटने टेक कर अपराधों की क्षमा मांगते हैं, वह चर्च है। लेकिन, समझ नहीं सका मैं, जहां लोग पी कर लोटते हैं उस मयखाने से कोई नफरत क्यों करता है? दोनों ही दीवाने हैं एक ईश्वर, अल्लाह और खुदा का दूसरा उस ईश्वर, अल्लाह और खुदा की बनाई अंगूर की बेटी का। दीवानगी और दीवानगी में यह फर्क दीवानापन नहीं तो और क्या है कि हमे मयखाने के दीवानों की दीवानगी की इंतेहा से नफरत है।