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बाहर की दुनिया

एक घर में
दो दुनिया होती हैं
बेटे के कमरे के अंदर  एक
और
बेटे के कमरे के बाहर दूसरी
कमरे के अंदर
बेटे के साथ उसकी पत्नी
और बेटा  होते हैं
वह बच्चे से खेलता, हँसता और लाड़ करता है
बीच बीच में
पत्नी को भीनी मुस्कुराहट के साथ देखता
आँखों ही आँखों में शरारत भरे संदेश देता है
पत्नी उसी प्रकार से
जवाब देती है, मुस्कुरा कर, नाज़ दिखा कर नखरे करते हुए
लेकिन,
बेटे के कमरे के बाहर की दुनिया.....!
बिल्कुल अलग होती है
इस दुनिया में
एक बूढ़ी, कमजोर और टूटी हुई माँ रहती है
जो सब खो चुकी है
पति, खुशी और स्वास्थ्य
उसे नहीं मिलता बेटे का स्नेह और बहू का सम्मान
पोता भी उसे मुंह बिचका कर देखता है
वह पकड़ना चाहती है
पर वह तेज़ी से निकल जाता है, पकड़ से बाहर
कमरे के अंदर से आती हंसी और उल्लास की ध्वनि
माँ के कानों को अच्छी लगती है
उसके चेहरे पर तिर जाती है
वह पुरानी शर्मीली मुस्कुराहट
जब पति जवान था, बेटा छोटा था
उसकी आंखे टिकी रहती हैं
बेटे के कमरे के दरवाजे पर
कि शायद
दरवाजा खुले
कमरे के अंदर की
खुशिया और ठिठोलियाँ
बिखर जाएँ उसके चारों ओर।



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