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जनवरी 1, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहक गयी बेटी

माँ ने सीख दी थी- बेटी दफ्तर जाना और सीधे घर वापस आना इधर उधर देखना नहीं किसी की छींटाकशी पर कान भी मत देना बेटी/माँ की सीख का अक्षरशः पालन करती थी दफ्तर जाती और सीधे वापस आती इधर उधर भी नहीं देखती, न कुछ सुनती । इसके बावजूद/एक दिन लड़की का अपहरण हो गया कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद बेहोश छोड़ गए सड़क पर, गंभीर हालत में । अस्पताल में लड़की का ईलाज चल रहा था बाहर माँ विलाप कर रही थी- हाय क्या हो गया बिटिया को कैसे बहक गए उसके पाँव।

न्यू इयर सेलिब्रेशन

नया साल सेलिब्रेट करने निकले  थे कुछ लोग नाचते रहे रात भर डिस्को पर झूमते रहे पी कर पब में जैसे ही बजा बारह का घंटा बुझी और जली रोशनी गूंज उठा  खुशियों भरा शोर चढ़ गया  नशे का सुरूर कुछ ज़्यादा थिरकने लगे थे लड़खड़ाते पाँव । सेलिब्रेशन खत्म हुआ सिर पर चढ़े नशे के साथ लड़खड़ाते पैर रोंद रहे थे सुनसान सड़क तभी निगाह पड़ी ठंड से काँपते अधनंगे शरीर पर देखने से पता लग रहा था शरीर जवान है-शायद अनछुवा भी शराबी आँखें गड़ गयी जिस्म के खुले हिस्सों पर आँखों आँखों में बाँट लिए अपने अपने हिस्से नशे से मुँदती आँखों पर चढ़ गया जवानी का नशा गरम लग रहा था काँपता शरीर घेर लिया दबोच लिया उसे कामुकता भरे उत्साह से उछलने लगे उसके शरीर के चीथड़े बोटी तरह नुचने लगा शरीर कामुक किलकारियाँ और हंसी डिस्को कर रही थी दर्द भरी चीख़ों के साथ शायद बहरे हो चुके थे आसपास के कान न जाने कितनी देर तक मनता रहा हॅप्पी न्यू इयर जब खत्म हुआ दरिंदगी का उत्सव फूटपाथ  पर रह गया कंपकँपाता शरीर  जिसे...