सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई 10, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ की चिंता

एक माँ  दरवाज़े पर बैठी बाट जोह रही है  अपने बेटे की . ऑफिस से अभी तक वापस नहीं आया है  क्यूँ देर हो गयी ? क्या बात हो गयी ? फ़ोन भी नहीं किया ? दसियों अनर्थ  मस्तिष्क में विचर जाते  चिंता की लकीरें ज्यादा गहरी हो जाती  माँ के माथे पर . माँ बहु से पूछती- लल्ला क्यूँ नहीं आया अभी तक? सास बहु के टीवी सीरियल देखती बहु  व्यंग्य करती- माजी अब वह आपके लल्ला नहीं रहे  बड़े हो गए हैं,   ऑफिस में नौकरी करते है, ज़िम्मेदार है, फंस गए होंगे किसी काम से । बहु टीवी का वोल्यूम कुछ ज्यादा तेज़ कर देती...