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जब विभागाध्यक्ष ने लिखा- अच्छा !

  सेवा-काल का एक किस्सा मेरे एक विभागीय निर्देशक ने मेरी चरित्र पंजिका में मेरा असेसमेंट करते हुए मुझे गुड यानि अच्छा लिखा. यहाँ बता दूं कि राज्य सेवा में प्रोनत्ति का एक ऐसा दौर आता है , जब आपका गुड या सामान्य असेसमेंट किसी काम का नहीं होता. अगर आपको पदोन्नति लेनी है तो आउट स्टैंडिंग प्रविष्टि लेनी होगी. परन्तु , अगर आप अपने विभागाध्यक्ष के अनुसार आउट स्टैंडिंग काम नहीं करते तो वह आपको क्यों आउट स्टैंडिंग लिखेगा. मेरे विभागाध्यक्ष ने भी यही किया. मैं विभागाध्यक्ष के पास गया. मैंने कहा- सर आपने तो मेरा अपमान कर दिया. मुझे अच्छा लिख दिया. सर मै या तो उत्कृष्ट हूँ या निकृष्ट नहीं बैड. आपको मेरा आकलन अच्छा नहीं करना चाहिए था. बैड लिख देते. वह बिंदास बोले- अरे भाई , तुम लोगों को सजा देने के लिए बैड लिखने की क्या ज़रुरत है. अच्छा या सामान्य लिख दो. जन्म भर प्रमोशन नहीं होगा. बैड लिख देता तो आप जवाब देते , मुझे आपके जवाब का जवाब देना पड़ता. इतना झंझट कौन करता. मुझे उनकी बेबाकी अच्छी लगी. मैंने कहा- इस साफगोई के लिए धन्यवाद सर. वैसे अगर आप मुझे बैड लिखते तो मैं वादा करता हूँ कि मै...

सरकारी सेवा में ब्राह्मण से प्रताड़ित हुआ एक ब्राह्मण

मैं एक विभाग में फाइनेंस कंट्रोलर था. वर्दी वाला विभाग था वह. एक डीजीपी साहब थे. जाति से ब्राह्मण और बेहद जातिवादी. मैं उनके अधीन काम करने के लिए भेजा गया. मेरा सरनेम कांडपाल है. उससे उन्हें यह गलतफहमी हो गई कि मैं पाल यानि गडरिया जाति या कहिये नीची जाति का हूँ. यहाँ मैं बता दूं कि मैंने अपनी सेवा भर अपना काम बेहद साफ सुथरा और पारदर्शिता वाला रखा है. मुझसे मेरे से सम्बंधित कोई सूचना मांगी जाए मैं तुरंत उपलब्ध करा सकता था. मेरे अधीन किसी कर्मचारी या अधिकारी की फाइल रोकने की हिम्मत नहीं हो सकती थी. इसके बावजूद न जाने क्या बात थी कि वह हमेशा नाराज़ नज़र आते. कनिष्ठ अधिकारियों के सामने गलत तरह से बात करते , डाट फटकार तो वह कहीं भी लगा सकते थे. मुझे नागवार गुजरता था , उनका कनिष्ठ अधिकारियों के सामने बदतमीजी करना. मैं इस विचार का अधिकारी रहा हूँ कि अगर किसी ने गलती की है तो उसे सज़ा जरूर दी जाए. फटकारना है तो उसकी गरिमा का ध्यान ज़रूर रखा जाए. लेकिन , वह ब्राह्मण देवता इसके कायल नहीं थे. चार पांच महीना तो यह चलता रहा. फिर मुझे लगा कि अब इनके द्वारा की जा रही मेरी बेइज्जती मेरे जमीर को ख़त्म कर...

क्या मुख्य सचिव की पेंशन न करें तो सबकी पेंशन हो जायेगी ?

यह वाकया पेंशन निदेशालय का है।  वहां के एक जॉइंट डायरेक्टर के पास एक पत्रकार महोदय पहुंचे। बोले आपके खिलाफ खबर है। पूछा - क्या खबर है ? बोले- आप आईएएस की पेंशन ज़ल्दी कर देते हो. अभी पिछले दिनों ही मुख्य सचिव की पेंशन आते ही हो गई.  जेडी बोले- बिलकुल ठीक कहा. ऐसा हुआ हुआ है. बताइए क्या कहना चाहिए था मुख्य सचिव को कि आपके जैसे मुख्य सचिव बहुत आते हैं. लाइन लगिए . तभी होगी? नहीं कह सकते. उनके घर तक पहुंचाए हैं पेंशन पेपर. आप ही बताइये आपका संपादक कहेगा किसी पेंशन के लिए तो हम नहीं करें. कह दें तुम्हारे जैसे संपादक बहुत से आते है. मैं तो दौड़ के कर दूंगा. कहेगा तो उसके ऑफिस भी भेज दूंगा उनका पीपीओ।   उनका चेहरा देख कर जेडी थोडा रुका. बोला- तुम कहोगे, तो तुम्हारी पेंशन भी अभी हो जायेगी। क्या हर ऐरा गैरा पत्रकार हो सकता है ? वह चुप। क्या बोले। उनका इंटरव्यू हो सकता था।  जेडी ने फिर कहा- अच्छा होता, अगर आप यह सवाल ले कर आते कि फला फला की पेंशन इतने महीने या दिनों से नहीं हुई है। मैं आपको बताता। बता भी रहा हूँ। तीन तीन महीने से पेंशन नहीं हुई है। लेकिन, हमारे निर...

मूंछ नहीं पूंछ

अफसोस ! मेरे एक पूंछ नहीं मूंछ है पूंछ होती तो हिला लेता भ्रष्टाचार के महाकुंभ में कुछ कमा लेता मूंछ मूंछ होती है आज के जमाने में पूछ नहीं होती है तभी तो तमाम मूंछ वाले मूंछे कटा कर दुम बना कर सत्ता के आगे पीछे हिला रहे हैं भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर पाप नाशनी गंगा में नहा कर हर हर चिल्ला रहे हैं जनता की कमाई हर कर  खूब कमा रहे हैं।   

अन्ना आपके आमरण अनशन से नहीं मिटने वाला भ्रष्टाचार

क्या भ्रष्टाचार मिटाना इतना आसान है कि एक आदमी ने आमरण अनशन किया, सैकड़ों लोग उसके इर्दगिर्द खड़े हो गए, टीवी चंनेल्स के कैमरा तन गए, खूब फोटो खिंची, उसके बाद सब हाथ मिलाते हुए अपने अपने घर चले गए? नहीं.... ऐसे भ्रष्टाचार का राक्षस ख़त्म होने वाला नहीं। यह सतत लड़ाई है। यह बरसों चलेगी। ठीक वैसी ही लड़ाई जैसी महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के साथ लड़ी थी। यह लड़ाई उनके एक अनशन के साथ पूरी नहीं हो गयी थी। उन्होंने बरसों इसे लड़ा। पर इससे पहले उन्होंने भारत को जाना, भारत के लोगों को जाना। अन्ना हजारे दिल्ली के बजाय यह लड़ाई मुंबई में या महाराष्ट्र में कहीं लड़ते तो अच्छा होता। यह लड़ाई वह बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट कण्ट्रोल के विरुद्ध लड़ते, जिन्होंने क्रिकेट वर्ल्ड कप जैसे महा आयोजन में भ्रष्टाचार, ब्लैक मार्केटिंग को घुसेड दिया। यह लड़ाई शरद पवार के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी, जिन्होंने अपने अमीर बोर्ड को मंत्री होने के नाते करोडो की टैक्स छूट दिलवा कर गरीब जानता के टैक्स का पैसा चूस लिया। यह लड़ाई मुंबई के उन लोगों के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी जिन्होंने अपने मुफ्त में या कम दामों में मिले टिकेट भारत के फ़ाइनल में प...