बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

दीपावली पर

मैंने दीपावली की रात
एक दीपक जलाया ही था
कि तभी
तेज़ हवा का झोंका आया
लगा, नन्हा दीपक घबराकर काँप रहा है,
बुझने बुझने को है ।
मैंने घबराकर,
उसके दोनों ओर
अपनी हथेलियों की अंजुरी लगा दी।
हवा के प्रहार के साथ थोड़ा झूलने के बाद
दीपक की लौ स्थिर हो गयी
मैंने आश्वस्त होकर हथेलियाँ हटा ली।
यह देख कर दीपक ने पूछा-
तुम इतना घबरा क्यूँ गए थे?
अमावस की इस रात को
भरसक उजाला देने का दायित्व मेरा है
मुझे पूरी रात जलते रहने की कोशिश करनी है
रात भर ऐसे ही हवा के झोंके चलते रहेंगे
अभी तुम चले जाओगे
तब भी
हवा के ऐसे तेज़ झोंके आते और जाते रहेंगे
मुझे बुझाने की कोशिश करते रहेंगे
उस समय,
मुझे ही स्थिर रहना है,
विपत्तियों के इन झोंकों का
सामना करना है,
इन्हे परास्त करना है।
हो सकता है कि
जब तुम सुबह आओ
तो मुझे अधजला पाओ
मेरा तेल थोड़ा बचा, इधर उधर गिरा नज़र आए
ऐसे में तुम निराश मत होना।
बस इतना करना
बचे खुचे तेल में
नया तेल डाल कर
फिर से मुझे जला देना
आखिर
अंधकार को भगाने का प्रयास
कल भी तो करना है।
         (२)

जब दीवाली का
पहला दिया जलेगा,
तब रात्रि का अंधकार मिटेगा नहीं
लेकिन यह दिया
आशा का दीप होगा
जो अंधकार को मिटाने की प्रेरणा देगा।
फिर उस एक दीप से
अन्य दीप जलेंगे
और उनके प्रकाश में
अन्तर्मन तक अंधकार भाग जाएगा।

                (३)
तेज़ हवा से काँपते दीपक की तरह
बीमार दादा जी का जीवन दीपक बुझ गया है।
मेरे लिए अच्छी खबर यह है कि
उनका बचा हुआ तेल
जो लाखों की जायदाद के रूप मे है
मेरे लिए बच गया है।


                (४)
दिए की बाटी
अपना मुंह जलती है
तेल की एक एक बूँद सोख कर
प्रकाश फैलाती है.
अपने लिए कुछ भी नहीं बचाती
उसके जलने से दिया दीपक बनता है
पूरा जल जाने के बावजूद
उसका अस्तित्व उसके त्याग की याद दिलाता है.
वही दिया
अपना स्वार्थ देखता है
अपने में पड़ा तेल
सोख लेता है.
बाटी के माध्यम से
बिखरने वाली प्रकाश की आयु
कम कर देता है
इसलिए मट्टी का दिया
मिटटी में मिल जाता है.

            (५)
अमावस की रात
काली अंधियारी होती है
हाथ को हाथ नहीं सूझता
पर अमावस का एक सन्देश है
मैं अंधेरी काली हूँ
ताकि,
तुम नन्हे नन्हे ढेरों दीप जला सको.
उनके प्रकाश में
अपनी और दूसरों की
राह जगमगा सको

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