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सितंबर 25, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बाबा दुल्हन और वह

पतझड़ में याद आते हैं  सूखे खड़खडाते पत्तों की तरह खांसते बाबा .   मेरी खिड़की से झांकता सूरज जैसे झिझकती शर्माती दुल्हन. मैंने उन्हें पहली बार देखा छत पर खड़े हुए दूर कुछ देखते हुए ढलते सूरज की रोशनी में उनके भूरे बाल गोरे चेहरे पर सोना सा बिखेर रहे थे मैं ललचाई आँखों से सोना बटोरता रहा तभी उनकी नज़र मुझ पर पड़ी आँखों में शर्म कौंधी वह ओट में हो गए इसके साथ ही बिखर गया सांझ में सोना.