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लेख कविताएँ और हास्य व्यंग्य

 

लगते हो अच्छे !

सच में कहूं  बताऊ कैसे, तुम मुझको  लगते हो अच्छे ! बीता बचपन जवां हुई यादें दिन का हंसना रात की बातें हंसते मुख पर दांत चमकते जैसे मोती हों सच्चे ! तुम आते थे फिर जाने को, कह जाते थे फिर आने को कब तक होगी आवाजाही बता भी देते नहीं थे बच्चे ! बीता बचपन आई जवानी भूली बिसरी वही कहानी बिदा हुए तुम उन यादों से जिसमे आते थे  सज के. 

अकड़ के

हर्ज़ क्या है खड़े होने में अकड़ के ! तेरे बाप की नहीं सड़क मेरे बाप की है हनक कचरा क्यों न फैलाऊँ गली में, कूचे में अकड़ के। खाक तुम इंसान हो अहमक अपने से परेशान हो बेझिझक दबे रहो, न सर उठाओ हम आये हैं अकड़ के। अपना- पराया कौन मत बहक आएगा कौन जायेगा कौन मत समझ जीता वही जो रहता है मुर्ग सा घूमता हुआ  अकड़ के।

दीवाली

नहीं चांदनी घनी रात में दीपों का उजियारा. टिम टिम टिम दीपक चमके अन्धकार का सीना छल के भागा दूर घना अंधियारा .  दीप जलाएं खील उड़ायें धूम पटाखे की मच जाए फुलझड़ियों से  झरा उजियारा. आओ आओ रामू भैया ठेल गरीबी खील खिलैया खा कर हर्षो जग प्यारा.

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन भीग गया तन मन बारिश  में। बादलों की तरह घर से निकल आना मेघ गर्जना संग चीखना चिल्लाना नंगे बदन सा मन भीग गया बारिश में। कागज़ की नाव का नाले में इतराना दूर तलक हम सबका बहते चले जाना अब तो बाल्कनी से देखते हैं बारिश में। अपनी नाव के संग दौड़ हम लगाते डूबे किसी की  नाव सभी खुश हो जाते कहाँ दोस्त, नाव कहाँ अकेले खड़े हम बारिश में।

किसान

मिट्टी को गोड़ कर घास को तोड़ कर खेत बनाता है किसान। खाद को मिलाता है खेत को निराता है श्रम का पसीना इसमे बहाता है बीज का रोपण  कर पौंध बनाता है किसान। सुबह उठ जाता है खेतों पर जाता है श्रम उसका फल जाये मन्नत मनाता है पौंधा खिलने के साथ खुश हो जाता है किसान। श्रम का प्रतीक है जीवन का गीत है आस्थाओं से अधिक पौरुष का मीत  है हर कौर के साथ याद हमे आता है किसान।

उन्हे टूटना होता है

जो फसलें हरी होती हैं उन्हे पकना होता है जो पक जाती हैं उन्हे कटना होता है बिना फलों का पेड़ तना होता है फलदार पेड़ों को झुकना होता है। खासियत इसमे नहीं कि आप हरे हैं या तने हैं जो दूसरों के काम आए उसे मिटना होता है। जो खामोश रहते हैं वह बुत होते हैं वक़्त बीतते ही उन्हे टूटना होता है।

होली का त्योहार

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बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता सिसक रही माँ बेटी पैदा हुई। मिठाई कहाँ बधाई कहाँ घर में शोक फैला यहाँ वहाँ। औरत के होते हुए यह क्या बात हुई। बेटी पैदा हुई। वंश की चिंता सब की चिंता उपेक्षित बेटी को कौन कहाँ गिनता। पढे लिखे समाज में जहालियत की बात हुई । बेटी पैदा हुई। वंश चलाने को बेटे की आस में माँ फिर माँ बनी बेटे के प्रयास में। भूंखों की फौज खड़ी नासमझी की बात हुई। बेटी पैदा हुई। बेटे की माँ ने बेटी की माँ ने भ्रूण हत्या की बेटी के बहाने। कैसे होगा बेटा अगर बेटी की न जात हुई।  

दिवाली

घोर अंधेरी रात में जगमग की बरसात ले दीवाली आयी है ।। बिखरी हैं जगमग रोशनियाँ । सजी हुई खुशियों की लड़ियाँ । अमावस को दूर भगा दीप बत्तियाँ जला जला धरती माँ जगमगाई है। दीवाली आयी है। झिलमिल झिलमिल दीप जले । खिल खिल खिल खिल खील खिले। लक्ष्मी माँ अब आ जाओ पूजा की बेदी सजाई है। दीवाली आयी है।  

ऊन उलझी

जाड़ों  में एक औरत स्वेटर बुनती है । फंदा डालना है फंदा उतारना है अधूरे सपनों को इनसे संवारना है हरेक स्वेटर में ज़िंदगी गुनती है। जाड़ा आता है जाड़ा चला जाता है जिसने कुछ ओढा हो उसे यह भाता है। गुनगुनी धूप से भूख कहाँ रुकती है। जिंदगी की स्वेटर में डिजाइन कहाँ उलझी हुई ऊन से सब हैं यहाँ ऐसी ऊन से माँ सपने बुनती है ।