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फ़रवरी 2, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं, कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है. 2. रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं, उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा। 3. क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको, इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं। 4. दुश्मनी करो इस तबीयत से कि दुश्मन भी लोहा मान ले। 5. आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।