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मई 29, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शुभ रात्री

जब सोने के लिए जाओ तब किसी को शुभरात्री क्यूँ बोलना पता नहीं कितनों ने कुछ खाया भी हो कितनों के पास पत्थर का बिछोना हो कितनों को सुस्त पड़ी हवा में ठंडक अनुभव करनी पड़ती हो जब भूखे पेट भजन नहीं हो सकता पत्थर पर जीवन पैदा नहीं हो सकता सुस्त हवा में दम घुटता हो, तो किसी को नींद कैसे आ सकती है?  तब आखिरी आदमी की रात्री कैसे शुभ हो सकती है? क्या अच्छा नहीं होगा अगर सोने से पहले कुछ देर नींद को दूर भगाते हुए कल कुछ लोगों के लिए दो रोटियों, एक अदद बिछोने और खजूर के पंखे का प्रबंध करने की सोचते हुए सोया जाए।

लोग

आप चलिये, अपनी राह पर आगे बढ़िए देखिये आपके पीछे आने वाले और आपको पुकारने वाले ढेरों लोग दिख जाएंगे। लेकिन भरोसा रखिए इनमे से ज्यादातर आपके अनुगामी नहीं वह आपको इसलिए आवाज़ दे रहे हैं कि आप पलटे लड़खड़ा कर गिरे और आगे नहीं बढ़ पाएँ