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फ़रवरी 14, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कातरता

मैं देख रहा था पिता की आँखों की कातरता वह कह रहे थे- बेटा, मकान टूट रहा है, बारिश में छत चूती है सारी सारी रात नींद नहीं आती दस हजार रुपये दे दो मरम्मत करा लूँगा । मुझे याद आया बचपन में जब बारिश होती मैं पूरे दिन धमाचौकड़ी मचाता पिता चिंता में डूबे रहते कि रात में छत चुएगी उस समय घर थोडा ही पुराना था कहीं कहीं से ही टपका आता, जो रात में जब बिस्तर पर मेरे ऊपर गिरता पिता बेचैन हो जाते अपनी हथेलियों की छाया कर मुझे बचाते सुरक्षित जगह पर मेरा बिस्तर लगा देते मुझे चैन की नींद देकर खुद पूरी रात टपके के साथ जागते गुज़ारते . एक दिन पिताजी तीन हज़ार का इंतज़ाम कर लाये थे छत की मरम्मत के लिए कि मेरा एक्सिडेंट हो गया सारे पैसे मेरे ईलाज में खर्च हो गए मैं ठीक हो गया छत बदस्तूर टपकती रही. मैं टूटी छत और पिता के चूते अरमानों के साथ बड़ा हो गया, पढ़ लिख गया और नौकरी भी करने लगा शादी करके बड़े शहर में रहने आ गया. उम्रदराज पिता के उम्रदराज मकान को अब मरम्मत की ज्यादा जरूरत थी. मुझे याद आया घर में पन्द्रह हज़ार रुपये पड़े हैं. मैं कहना चाहता था हाँ पिताजी, ले जाइये पैसे...