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जून 15, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गाय

एक शहर की वीरान और साफ सुथरी गली में एक भूखी गाय घूम रही है दोनों ओर घरों के बावजूद वीरानी है क्यूंकि, घर के पुरुष ऑफिस चले गए हैं और बच्चे स्कूल  कामकाजी महिलायें भी निकल गयी हैं घर में रह गए हैं बूढ़े और निकम्मे बूढ़े  सो गए हैं उन्हे इससे मतलब नहीं कि कोई गाय भूखी घूम रही है निकम्मों के पास देने का कोई अधिकार नहीं होता गाय को चाह है किसी बड़े से टुकड़े की चाहे वह टुकड़ा रोटी का हो, दफ्ती का या कागज़ का पॉलिथीन भी चल जाएगी, अगर कुछ न मिले तो । मगर गाय को नहीं मालूम कि, शहर अब साफ सुथरे रहने लगे हैं, गलियाँ बिल्कुल गंदगी रहित हैं कूड़ा नगर पालिका वाले उठा ले जाते हैं बासी खाना भिखारी या घर में काम करें वाले नौकर गाय सोच रही है- कभी इस शहर में, शहर की इस गंदी गली में बेशक पीठ पर कुछ डंडे पड़ते थे पर मुंह मारने को इतना कुछ मिल जाता था कि पेट भर जाता था पीठ पर पड़े डंडों का दर्द नहीं होता था।